विधान:१.चार चरण।
२.दो चरण समतुकांत।
३.लघु गुरु की १६ आवृत्ति
४.१२ पर यति।
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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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चलो चलें बढ़े चलें, सु -काज ही सदा फलें,
रुकें नहीं झुकें नहीं,निराश भाव क्यों जगें।
न राह ही कुराह हो,अमेल की न चाह हो,
कहें सही सुनें सही,सभी कहीं शुभं लगे।।
पिता सदा सुपूज्य हों,सुमात भी सुसेव्य हों,
न मान भूमि पै कहीं,यही यहाँ शिवं सगे।
सुवेश देह धारते, सुवेश मान मारते।
विभा न प्यार सी बही, न देश भाव में पगे।।
🪴 शुभमस्तु !
१७.०४.२०२१◆१२.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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