शनिवार, 20 जुलाई 2019

जल -चेतना [विधा:सायली]

पनघट
सूने -  सूने
क्या करती पनिहारिन
कूप  सूखते
सारे।

 भीड़
बढ़  गई
नल  पर भारी
क्या  करती
बेचारी।

दोहन
जल  का
बहा  रहा  तू
वृथा  क्यों
पानी।

लम्बी
लगी कतारें
डिब्बे बर्तन लेकर
नर  - नारी
आए।

समझें
 नीर महत्ता
प्यासा पत्ता -पत्ता
जल - संकट
भीषण।

सुधरो
हे  मानव!
जल -  चेतना  न
आई  तुझको
तरसेगा।

सावन
सूखे - सूखे
बिन पानी  सब
प्यासी - भूखी
जनता।

गौरैया
निज नीड़
न  बरसा  पानी
प्यासी -प्यासी
मरती।

सरसी
सर सारे
बिना सलिल सब
लीन प्रतीक्षा
हारे।

आँख
दिखाए बादल
डाँटें गरज -गरज
बिजली तड़पाए
गुस्साए।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
💦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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