मंगलवार, 31 मार्च 2020

माँ का वंदन [कुण्डलिया]


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✍शब्दकार ©
🛕 डॉ.भगवत  स्वरूप 'शुभम'
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  1
माँ   दुर्गा पर आस्था,माँ  का  ही विश्वास।
चरणों     में वंदन  करूँ,माता की ही आस।।
माता   की ही आस,वास  हो मेरी  रसना।
साँस-साँस में वास,त्रिकुटि में मेरी बसना।।
'शुभम'    एक ही टेक,चाह  माते!अपवर्गा।
धरूँ   धारण   ध्यान,भवानी  हे माँ   दुर्गा।।

2
माता के दरबार में ,   खड़ा हुआ कर जोड़।
देखे    जीवन     में  बड़े , टेढ़े - मेढ़े  मोड़।।
टेढ़े - मेढ़े   मोड़, राह   दिखला   दो  मैया।
काँटों    की  है  राह ,कर   रहा  दैया दैया।।
'शुभम'  दूर कर ताप,द्वार   तेरे जो  आता।
होता    नहीं निराश,  राह दिख लाती माता।।

 3
माँ   देवी   के   रूप में,कृपा  करो माँ  आप।
सुख     समृद्धि वर्षा करो,हरो दुःख संताप।।
हरो    दुःख संताप, ध्यान  में माते  आओ।
तीन तरह के ताप, पलों में शीघ्र मिटाओ।।
'शुभम'   समर्पि  त भाव,हृदय के तेरा सेवी।
 करता   लेकर चाव, चरण   युग हे माँ देवी।।

 4
तू अमोघ फलदायिनी,गौरी शक्ति स्वरूप।
कुंद  पुष्प सम  रूप रँग,वसनाभूषण यूप।।
वसनाभूषण       यूप , महा   गौरी माँ मेरी।
करते  आरति  गान,  प्रात  संध्या को तेरी।।
'शुभम'     कृपा का दान,न पाए कोरोना छू।
स्वस्थ    रहे  परिवार,   हमारी  माँ गौरी  तू।।
  5
देवी  की  पाकर कृपा,शिव   का बदला रूप।
आधे  नारीश्वर  बने,  पा   ली सिद्धि  अनूप।
पा   ली   सिद्धि  अनूप,देव  तव वंदन करते।
नभ  से  बरसें  फूल,  मानवी विपदा  हरते।।
'शुभम' मिले नर यौनि, रहे माँ का पदसेवी।
प्रतिपल      रहा    पुकार,  शारदे दुर्गा  देवी।।

💐 शुभमस्तु !

31.03.2020 ◆3.30 अप.

सोमवार, 30 मार्च 2020

शिक्षक बन समझाते हैं [ गीत ]


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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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छाई       कोरोना  -   रातें    हैं।
सब शिक्षक बन समझाते हैं।।

साबुन  से  हाथ  सभी  धोना।
हो  शुद्ध स्वच्छ घर का कोना।
दस - बीस नियम बतलाते हैं।
सब शिक्षक बन समझाते हैं।।

मत घर  से बाहर  तुम  जाना।
एकांतवास     ही    अपनाना।।
सड़कों     पर  चित्र खिंचाते   हैं।
सब   शिक्षक  बन समझाते हैं।

कहते    हैं   मास्क  लगाना  है।
मीटर  की    दूरी    पाना  है।।
निज   मास्क हटा सिखलाते हैं।
सब   शिक्षक   बन समझाते हैं।।

खिड़की  द्वारों  से  झाँक  रहे।
सड़कों   पर बाहर  ताक  रहे।।
सेल्फ़ी     लेकर   मुस्काते  हैं।
सब  शिक्षक बन समझाते हैं।।

मजदूरों      की    लाचारी    है।
निर्धनता     ही    बीमारी    है।।
कोरोना   - भय  दिखलाते हैं।
सब    शिक्षक बन समझाते हैं।।

मजबूर   पुलिस  को  करते हैं।
बेशर्मी    का   दम   भरते  हैं।।
फाकों   पर  घर जतलाते   हैं।
सब   शिक्षक बन समझाते हैं।।

स्टॉक     घरों   में    कर  लेते।
'सत  पात्र' बने  घर भर  लेते।।
वे   'शुभम'    नहीं   शरमाते हैं।
सब   शिक्षक   बन समझाते हैं।।

💐 शुभमस्तु !

30.03.2020◆4.45 अपराह्न।

शनिवार, 28 मार्च 2020

ग़ज़ल


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✍ शब्दकार ©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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साँप  औ'  नेवले   हो गए साथ हैं।
एक    दूजे के  धुलवा रहे हाथ हैं।।

वतन    को  वतन वे समझते नहीं,
खुद   को  समझे हुए वे सुकरात हैं।

जान पर आ गई याद माँ को किया,
पत्थरों     को   समझते हुए नाथ हैं।

जाति मज़हब की दिवारें ढहने लगीं,
 भाईचारे     की      करते हुए बात हैं।

आदमी ख़ुदपरस्ती के बुत हैं 'शुभम',
भूल   जाते   वे असल मुए औकात हैं।

💐 शुभमस्तु !

28.03.2020●7.00अप.

ग़ज़ल


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✍ शब्दकार©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अफ़वाहों का बाज़ार गरम है।
हुआ आदमी  बिना  शरम  है।

सबको  लाले  पड़े  जान  के ,
फैलाते  कुछ  यहाँ  भरम  हैं।

राजनीति   लाशों   पर करते,
निंदा  करने   योग्य  करम है।

धर्मध्वजा   लेकर  जो फिरते,
लूट   मचाना   बना   धरम है।

क़ुदरत का जब डंडा  पड़ता ,
तब  होता    इंसान नरम  है।

नियम  और   क़ानून  न माने,
कहलाता   वह मूढ़  परम  है।

'शुभम'रोग को खेल समझता,
हैवानी  हो   गई    चरम    है।

💐 शुभमस्तु !

28.03.2020 ◆6.15 अपराह्न।

गुरुवार, 26 मार्च 2020

गधाऐ नोंन दऔ [ व्यंग्य ]

✍ लेखक ©
 ✅ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम
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              एक देशी कहावत बहुत प्रसिद्ध है:'गधाऐ नोंन दऔ, गधा नें कही कै हिये की ऊ फोरीं'। कभी - कभी ये कहावत सौ फीसद आदमी पर चरितार्थ होती नज़र आती है। यद्यपि ये कहावतें और मुहावरे आदमी के द्वारा आदमी के लिए ही बनाई जाती हैं ,जिनमें बहुत से पशु , पक्षियों ,कीड़े मकोड़ों को आधार बनाकर कही जाती रही हैं।जैसे : बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, जल में रहकर मगर से बैर करना ,लंगूर के हाथ अंगूर, अंधे के हाथ बटेर लगना, ऊँट के मुँह में जीरा, एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है , खग जाने खग  ही  की भाषा, आस्तीन का साँप, पेट में चूहे कूदना , भैंस के आगे बीन बजाई  आदि आदि।

         आज भी देश और दुनिया के हालात भी कुछ इसी प्रकार के हैं। उन्हें कितना भी समझा लिया जाए ,पर उनकी समझ में आने वाला नहीं हैं। जब अक्ल का दिवालिया पन हो जाता है ,तो आदमी को कितना भी समझा लीजिए , पर रहते वही ढाक के तीन पात ही हैं ।उनके चिकने भेजे से सुझाव वैसे ही बह जाता है , जैसे चिकने घड़े से पानी।क्या करें आख़िर ऐसे प्राणी। उन्हें लकीर के फकीर होना ही पढ़ाया गया है। वे बनी बनाई लकीर पर चलने में ही अपने अहम की तुष्टि मानकर हर्षित हैं। लकीर से उतरे कि धड़ाम से नीचे गिरे। उन्हें यही डर हर वक्त सताता रहता है।'कोई क्या कहेगा ?' का भूत जो सवार है उनके ऊपर।वह भूत उन्हें कुछ भी नया सोचने और करने के लिए उनकी बुद्धि कुंठित किए रखता है।

          आदमी है ,तो विवेक तो होगा ही, ऐसा माना जाता है। भेड़ बनकर भीड़ का हिस्सा बनने में कोई समझदारी नहीं है। आज उसी भीड़ से बचने के लिए कहा जा रहा है। यदि भीड़ से बचोगे तो भाड़ से भी बचे रहोगे। यदि भीड़ में रहे तो भाड़ भी दूर नहीं है। ये आत्महंता प्रवृत्ति अंधभक्त के लिए निश्चित ही भाड़ में झोंकने वाली है। कहा गया है कि   'सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।पारस परस कुधातु सुहाई।।'  पर शठ अपनी शठता नहीं छोड़ना चाहे ,तो कोई भला क्या कर सकता है? साँप भले ही चंदन के पेड़ से लिपटा रहे , उसके साँपत्व में अंतर नहीं आता। उसमें न चंदन की  खुशबू आती है और न ही शीतलता ही । वह  जहर का कहर भरे हुए साँप ही बना रह जाता है।

               यही हाल देश के कुछ लोगों का है। गोबर के गुबरैले को गोबर कलाकंद नज़र आता है।उसकी महक में उसे इत्र भी मूत्र दिखता है।अपनी गोबर की छोटी सी दुनिया से वह बाहर नहीं आना चाहता।एक छेद करके उसमें घुस जाना और उसी की कंदरा में बैठकर चैन का राग अलापना उसकी अटल , अचल दिनचर्या है। उससे वह टस से मस नहीं होता और न ही सोचता है।  आदमी के शरीर में गुबरैले का जीवन जीना ,  उसे पसंद है तो है  ।  हम और आप भला क्या कर सकते हैं।

        कोरोना की काली छाया सारे संसार के ऊपर मौत की वर्षा कर रही है। सारा जगत त्राहि माम ! त्राहि माम!! करते हुए चीख -चिल्ला रहा है , पर तथाकथित गुबरैलों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। भगवान भी उन्हीं की रक्षा करता है ,  जो अपनी रक्षा करता है। जो अपनी रक्षा नहीं करता , उसे वह बिना पतवार की नाव की तरह प्रवाह में बहने के लिए छोड़ देता है। इसलिए कहा गया है :
  सबते भले वे मूढ़ जन जिन्हें न व्यापे जगत गति।
फूलहिं फरहिं न बेत जदपि सुधा बरसहिं जलद।। 
 💐 शुभमस्तु ! 26.03.2020 ◆6.30 अपराह्न।
[ व्यंग्य ]

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छूत यात्री [ अतुकान्तिका ]

              
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✍ शब्दकार ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दिनों का फेर है,
महा  अंधेर है,
बैठिए घर में
साधकर चुप्पी,
न बजाइए ज़्यादा
निज जीभ की कुप्पी।

होगा पुनः
ये आसमां नीला,
चहचहायेंगे पखेरू,
उड़ेंगे पुनः 
 पहले की तरह,
जब न रहे
वे दिन,
तो रहेंगे क्यों
आज के दुर्दिन,
जिनको जी रहे हैं
हम सभी गिन -गिन,
न करो ज़्यादा
मक्खियों की तरह
भिन् -भिन् ,
मधुमक्खियों के 
छत्ते पर ,
अपने घरों में ही
भिनभिनाते रहो,
अपने -अपने 
घोंसलों में ,
छत्तों में
(छतों में नहीं)
मस्त 
खाते -पीते रहो।

वसुधैव कुटुम्बकम की
सद्भावना
अनुगूँज की तरह,
गुंजायमान है,
कान लगाकर 
उसको सुनो ,
देह की देह से
दूरियाँ 
कुछ और ही बढ़ा लो
न करने दो 
परस न करो ।

नहीं है वक्त 
दिखाने का 
तुम्हारी हेकड़ी,
पूजा- पाठ ,भजन,
अपने ही 
घरों में करो,
नहीं काम आएंगे,
मज़हबी उसूल,
कर रहे हो,
आत्महत्या 
तो करो।

एक ही राह 
आए हो ,
जाओगे भी
उसी राह,
फिर बनावटी 
उसूलों की आग,
जलाते क्यों हो ?
अपनी अहमियत को
सस्ते में 
मिटाते क्यों हो?
आदमी हो अगर
आदमियत से परे
जाते क्यों हो ?

चलता है कोरोना 
चलने वालों के साथ ,
दिखाता है  तुम्हें
अपने हजारों हाथ!
वह तो छूत यात्री है,
चला जाएगा,
तुम तो रुक जाओ
अपने घर में,
नहीं रुकेगा 
वह तुम्हारे पास,
आया है 
चलने वालों की
रोकने को साँस।

स्वच्छता में
बसते हैं सदा भगवान,
स्वच्छता ही देगी
उसको मरण का दान,
खाई है जिन्होंने
जिंदा या मुर्दा जान,
जिनका उदर है
गहरा कब्रिस्तान,
उन्हीं का जाया 
हुआ है कोरोना, 
प्राण रक्षा हित
'शुभम'  अपने हाथ
पुनः -पुनः धोना,
प्रमादी न होना।

💐 शुभमस्तु !

26.03.2020 ◆3.30 अपराह्न।

बिल्ली चूहे से कहे [ कुण्डलिया ]


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✍शब्दकार ©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम
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झाड़ू        लेकर     हाथ   में,
घूम         रहा         संसार।
चेत !  चेत !! ओ चेत!!! नर,
कर      देता        पतझार।।
कर           देता     पतझार ,
राह  में     मानव     आता।
खाँसी        तेज      बुखार ,
यहीं   से    पर    फैलाता।।
'शुभम'      सत्य       संदेश,
समय   निज  घर  को देकर।
कोरोना                  तैयार , 
चला      है   झाड़ू   लेकर।।1।।

कोरोना       दिखता     नहीं,
रंग    न       कोई         गंध।
अपनी      रक्षा    आप   ही ,
करें            आत्म प्रतिबंध।।
करें            आत्म  प्रतिबंध,
सभी       अपनी      घरबंदी।
पढ़ें        स्वच्छता        पाठ,
दूर     करके     छलछन्दी।।
'शुभम'      स्वच्छ   हों  हाथ,
बीज      मत   कड़वे   बोना।
नहीं          करेगा        माफ़,
अगर    आया   कोरोना।।2।।

तोड़ा   जिसने    नियम को,
या       तोड़ा         क़ानून।
नहीं     ईश      रक्षा    करें ,
हो     जाए     घर       सून।।
हो      जाए      घर     सून,
क्षमा    का    काम   न कोई ।
मनमानी         नर       छोड़ ,
नहीं    धन     धाम    रसोई।।
'शुभम'      चेत    जा   आज,
उसी   ने     जीवन     छोड़ा।
रहे         अहं       में      चूर,
निजी  अनुशासन   तोड़ा।।3।।

बिल्ली       चूहे      से    कहे ,
बिल      में       अपने    बैठ।
उछल -  कूद    ज़्यादा   करे,
निकल       जायगी        ऐंठ।।
निकल        जायगी      ऐंठ ,
सेठ      मत   बन    ले हल्दी।
मैं      तो      दूँगी        छोड़ ,
स्वर्ग        पहुँचेगा    जल्दी।।
'शुभम'     बना     ले     छेद ,
आगरा      से    तू     दिल्ली।
बिल     के        अंदर    बैठ ,
कहे     चूहे    से    बिल्ली।।4।।

त्यागा   बिल्ली    ने  सहज ,
चूहे         जी         से     बैर।
पकड़ - पकड़ बिल में रखे,
मना       रही        है      खैर।।
मना         रही      है      खैर,
समझकर     अपना   बच्चा।
दिखा       रही     निज     नेह,
आज     देखो    ये    सच्चा।।
'शुभम'     किंतु    जड़   मूस,
बिलों    से  निकला    भागा।
बिल्ली         ने    पर     दंड,
शूल    चूहे    पर   त्यागा।।5।।

💐 शुभमस्तु !

२५.०३.२०२०◆७.००अपराह्न।

ग़ज़ल


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 💐 शब्दकार©
🌐 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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इंसां   को   सिखाने   आई।
कुदरत कुछ  दिखाने आई।।

तू   पानी   का   बुलबुला है,
ये   सबको    बताने   आई।

तोड़ा    है  दम्भ   बल   का ,
गुमाँ   तेरा     मिटाने  आई।

मज़हब    की  दीवार  हैं जो,
पल      में     हटाने    आई।

मुँह    बंद   कर  ले   अपना,
यह   भी     जताने     आई।

कोरोना   तो     है     बहाना,
स्वच्छता      सुझाने    आई।

गलबाँहीँ  'शुभम'   है  झूठी ,
दो  कर       जुड़ाने     आई।

💐 शुभमस्तु !

24.03.2020 ◆5.30 अपराह्न।

किस किस को क्या समझाना है [ गीत ]


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✍ शब्दकार ©
🙉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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किस   किस को क्या समझाना है!
वह    बनता    सबका     नाना  है।।

आदमी     यहाँ    का अति ज्ञानी।
बहरा      बनने     की   है   ठानी।।
बहरों   को    बिगुल   सुनाना है ?
किस  किस को क्या समझाना है!!

सुन       ले   तो  नहीं  मानता  है।
यद्यपि     वह  नहीं  जानता  है।।
सुन     इधर , उधर  कर जाना है।
किस किस को क्या समझाना है!!

जो     पढ़े    नहीं    सुल्तान  बड़े।
ज्ञानी     को     डंडा   तान खड़े।।
प्रभु       इनसे    हमें  बचाना  है।
किस किस को क्या समझाना है!!

जो      पढ़े  -  लिखे   वे  गुने  नहीं।
वे     बात   किसी  की  सुनें नहीं।।
यों       देश     गर्त   में    जाना  है।
किस किस को क्या समझाना है!!

सबकी      चलती     मनमानी है।
ज्ञानी   बस    कुतिया   कानी है।।
उसको      इंग्लैंड    सिधाना   है।
किस किस को क्या समझाना है!!

हर      शाख      पै उल्लू  बैठा  है।
टाँगें       पसार    कर   लेटा  है।।
कैसे        अब     उसे   उठाना  है।
किस किस को क्या समझाना है!!

ईमान     रहित   अधिकारी  हैं।
वे    धन      के  निपट पुजारी हैं।।
अवसर       ही    सदा  भुनाना है।
किस किस को क्या समझाना है!!

सबके        सिर    ऊपर   नेता है।
मीठे       आश्वासन     देता   है।।
मकड़ी         का  ताना  - बाना है।
किस   किस को क्या समझाना है!!

तब     तंत्र    सयानों     के चलते।
अब    मंत्र    अयानों  के छलते।।
जनता   को    चुसते      जाना   है।
किस किस को क्या समझाना है!!

चमचे     ही      दाल  गलाते   हैं।
ताजा     शिका  र  नित लाते हैं।।
नेता      को     माल   उड़ाना  है।
किस किसको क्या समझाना है!!

जनता     की     कोई  सुने  नहीं।
क्या    करे   अगर सिर धुने नहीं।
ऐसा   ही    'शुभम'   जमाना  है।
किस   किस को क्या समझाना है!!

💐 शुभमस्तु !

22.03.2020 ●6.45 अपराह्न।

घरबंदी [ गीत ]


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 ✍शब्दकार©
🏡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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घरबंदी    आज   कर    ली।
आधी   बीमारी    हर   ली।।

सब     एक     घाट    आए।
एक    नाव     बैठ     पाए।।
वैतरणी   पार     कर    ली।
घरबंदी    आज   कर   ली।।

अब    जान   की   पड़ी  है।
ऐसी    बुरी      घड़ी     है।।
 दुश्मनी   सरक   उधर  ली।
घरबंदी   आज   कर   ली।।

 देते     उसे        न      गाली।
जिसकी     है   गंदी    नाली।।
बदबू   से    यारी   कर   ली।
घरबंदी   आज    कर    ली।।

फिर   आ    गई   है    होली।
निकले  न   कड़वी    बोली।।
एक रंग    दुनिया    कर  ली।
घरबंदी     आज   कर    ली।।

चुपचाप       हैं       विरोधी।
सत्ता       के       छिद्रशोधी।।
निज  जीभ   मुँह में  धर ली।
घरबंदी   आज    कर    ली।।

दलदल  नहीं   है   दल  का।
भाता सुमन    कमल   का।।
दानवता    भी    सुधर   ली।
घरबंदी     आज   कर   ली।।

बच      पाएँगीं   जो    जानें।
अपनी      कमानें       तानें।।
अब  तक  बहुत  बिखर ली।
घरबंदी     आज  कर    ली।।

गौ -  शेर      मिल    रहे    हैं।
पी    घाट     जल    रहे   हैं।।
कस 'शुभम' निज  कमर ली।
घरबंदी   आज     कर   ली।।

💐 शुभमस्तु !

22.03.2020 ◆ 3.45 अपराह्न।

💐 भारतीय 'घरबंदी दिवस'
की हार्दिक शुभकामनाएं।💐

कोरोना सायली [ सायली ]


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✍ शब्दकार ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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चीनी
शहर वुहान
कोरोना का जनक
जैविक -बम
रूप।

कोरोना
वायरस का
प्रहार घातक है
सावधानी ही
उपचार।

हाथ 
पर हाथ
रखे मत बैठो
बार -बार
धो।

बट्टी
कपूर की
जलाएँ सुबह शाम
अपने घर 
में।

नमक 
मिला पानी 
पोंछा   लगाएं    नित
. नकारात्मक ऊर्जा 
हटेगी।

स्पर्श
नहीं करें
हाथ से अपने
आँख नाक
मुँह।

हराना 
कोरोना को
धैर्य साहस निर्भयता
सबके लिए 
आवश्यक।

प्रबल 
रहे इच्छाशक्ति
दूर  से   नमस्ते 
जोड़ कर 
हाथ।

मिलाएँ
मत हाथ
न करें आलिंगन
कोई भी
परस्पर।

मिलाएँ
मन से 
अपने मन सभी
तन रहे
 दूर।

रोकें
साँस अपनी
बीस सेकिंड भर
न घुटन
खाँसी।

औषधि
एक ही
स्वच्छता बनाए रखें
कोरोना से
बचाव ।

रोग ,
आग , ऋण,
समूल नष्ट करें,
बेहतर है
 यही।

आदमी
भयभीत है
चलता है विपरीत
नहीं यह
रीत।

जाएगा
जो आया
कोरोना का कहर
नहीं रहेगा 
ज़हर।।

💐 शुभमस्तु !

21.03.2020◆7.30 अपराह्न।

कोरोना निवारण सीख [ सवैया ]


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✍ शब्दकार ©
🙊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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 आँधी         सौ  छाय गयौ सिगरे जग,
कोरोना    तोय  जु   लाज   न आवै।
जन    मानस   कूँ  तु    सताय रह्यौ,
बिनआँखिन    के हमें आँखि दिखावै।।
हाथ       न     पायँ     न   पंख   तिरे,
इतते         उतकूँ     तू   दौड़  लगावै।
का        हम    तेरौ     बिगारि   दियौ,
रहि   दूरि   ही दूरि न  गाज गिरावै।।1।

हर      एक   बुरे   में   भलौ  ही छिपौ,
पहचानि     सकौ    पहचानि  न  लेहू।
तन     स्वच्छ      रखौ    घर - बार सही,
तन   से    तन  कौ  जनि  कीजै सनेहू।।
कर     जोरि     करौ    बन्दन सिगरे ,
मति     चूमि   न  बाँह में  बाँधि  रे केहू।
डारि      कें       नोंन    जौ  पोंछा करौ,
घर   आय न   ऊर्जा  बुरी  तव गेहू।।2।

विष     के    अणु   बोइ   दए जग में,
अँगना       तिनके       दैया   -  दैया।
जे     हानि       वुहान   भरी   इतनी,
उन     देशन  कूँ   न   मिली    छैया।।
सब       दोष        मिटाइ   रहीं   दुर्गे,
कर       जोरि       करें     मैया   मैया।
नित       होम     कौ धूम  पवित्र बड़ौ,
वु   ही    पार    करें  अपनी   नैया।।3

यहि       धर्म - धरा  निज भारत है,
अध्यातम      कौ   उजियार  भरौ है।
करुणा     ममता   अहिंसा  कौ धामु,
उर   सें   उर   कौ अति प्यार धरौ है।।
सब      स्वस्थ      रहें    नीरोग  रहें,
हमनें    सबकौ   नित चाहौ भलौ है।
कोरोना      बिचारौ      करैगौ कहा ,
जस    आयौ  तैसेंई जाय चलौ है।।4।

इत     कालु      बुरौ     आवै  जबहीं,
धरि    धीरजु     एक    रहौ    सिगरे।
इच्छा   -  बल      कूँ  मजबूत रखौ,
कोऊ        काज    नहीं  कबहूँ बिगरे।
मति     छोट      कभूं   समझौ बैरी,
जर -  मूल    ते   नास  करौ मिलिरे।
'शुभ'     नेंकसी     बात   बताय रहौ,
सिग    वायरस    बेगि    मरें बिखरे।5।

💐 शुभमस्तु !

21.03.2020 ◆2.15अप.

ग़ज़ल


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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कोरोना      का कहर बड़ा भारी है।
जगत में   व्याप्त   महामारी है।।

बचाव     ही  इलाज़ वायरस का ,
दूसरों    को सीख मगर जारी है।

पीछे    पड़  गया  है हाथ धोकर,
हाथ    धोने   का  तार  तारी है।

डरा   हुआ  हर  शख्स  मरने से,
कौन   जानेगा  किसकी  बारी है।

संग   अवधान  के चलना, जीना,
इस     इंसान  ने  न जंग  हारी है।

सिखाने चल पड़ी सबक इंसां को,
बाकी कुदरत की बड़ी उधारी है।

बहुत  जंगल उजाड़े,प्रकृति से खेले
'शुभम ' अब टूटने लगी ख़ुमारी है।

💐 शुभमस्तु !

20.03.2020 ◆9.00 अप.

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

अच्छी होती सदा सफ़ाई [ बालगीत ]


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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अच्छी       होती  सदा  सफ़ाई।
देते     हम   सब   आज दुहाई।।

हाथ,  पैर ,तन,मन   धो  डालें।
घर    बाहर  भी  देखें - भालें।।
बात      बड़ों   ने  ये   समझाई।
अच्छी    होती  सदा   सफ़ाई।।

सुबह उठें   कर - दर्शन  कर लें।
लक्ष्मी , वाणी   मातु सुमिर लें।।
कर      के   मूल  गोविंद  सहाई।
अच्छी      होती     सदा  सफ़ाई।।

पीवें      तुरत   गुनगुना   पानी।
स्वच्छ    उदर की हमने ठानी।।
फिर     मंजन    दातुन  रगड़ाई।
अच्छी    होती    सदा    सफ़ाई।।

अब    नहान   की     आती  बारी।
खिलती  तन मन की हर क्यारी।।
धुले    वस्त्र    फ़िर   पहनें   भाई।
अच्छी    होती      सदा   सफ़ाई।।

मत   डालें    नाली  में  कचरा।
बढ़ें   अन्यथा    माखी  मछरा।।
रोग    निरोधक  कर छिड़काई।
अच्छी     होती    सदा  सफ़ाई।।

घर -   बाहर     हर  रोज बुहारें।
गमलों   को   दें सलिल फुहारें।।
नमक   मिला   पोंछा सुखदाई।
अच्छी    होती    सदा  सफ़ाई।।

नख ,   बालों   को भी कटवाएँ।
बड़े   अधिक   जब वे हो जाएँ।।
जूँये  न  कर   लें   रक्त  चुसाई।
अच्छी      होती   सदा   सफ़ाई।।

💐 शुभमस्तु !

20.03.2020 ◆5.00 अप.

'बेरस' कोरोना [ दोहा ]

    
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✍ शब्दकार©
🌞  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गली-गली डाक्टर यहाँ, वह भी पूर्ण निशुल्क।
कोरोना    ने  कर दिया ,  डाक्टर पूरा   मुल्क।।

क्लिनिक    पर  बैठे हुए , लेते  मोटा शुल्क।
कोरोना   - बम का  धुआँ , फैला सारे मुल्क।।

पूर्ण  शुद्धता  का  सबक ,लेकर आया आज।
कोरोना  कह  ते जिसे ,   रोगों  का सरताज।।

बार  -  बार धो  हाथ निज, रहो दूर  ही  दूर।
हाथ  जोड़कर  नमन हो, स्वस्थ देह भरपूर।।

आलिंगन,  चुम्बन  सभी, बंद करो तत्काल।
बात  करें   तो दूर से,  करो न वृथा   सवाल।।

शैया   जब  छोड़ो सुबह, लहसुन पोती  चार।
उष्ण  नीर  के  साथ  में,खाओ बिना विचार।।

चुटकी  भर  सेंधा नमक,  उष्ण नीर में डाल।
करो  गरारे  नित सुबह, हो निरोग तत्काल।।

स्वछ वसनपट बाँध मुँह, निकलें घर के द्वार।
घुसे   न 'बेरस'    देह में,     रुके  रोग  संचार।।

धन्यवाद   उनको   कहें,जो   सेवा - संलग्न।
जीवन -  रक्षा    कर    रहे, कर्तव्यों में मग्न।।

मत   समझें    उपहास  की, बात बड़ी गंभीर।
कोरोना    से   बच   गए ,  तभी धरेंगे   धीर।।

बट्टी    एक    कपूर    की, लेकर प्रातः  शाम।
नित्य   जलाएँ   प्रेम    से, मित्रो अपने धाम।।

कीट,  विषों   के   अणु सभी,   हो जाते हैं दूर।
जलता   है   जिसके    भवन,नित्यं सेत कपूर।।

प्राणों   के   आयाम  को, कहते  प्राणायाम।
कर लें   तो   उत्तम बहुत,मित्रो सुबहो-शाम।।

नाड़ीशोधन,शीतली,   शुभ अनुलोम विलोम।
कपालभाती,  भस्त्रिका  ,शुद्ध करें तनव्योम।।

क्वाथ - अमृता    पान कर,करें ईश का ध्यान।
स्वस्थ देह मन सब करें,इच्छा शक्ति महान।।

💐 शुभमस्तु!

20.03.2020 ◆3.45अप.

गुरुवार, 19 मार्च 2020

मन [लघु लेख]

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✍ लेखक © 
🌸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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                   एक छोटा -सा शब्द 'मन'। शब्द छोटा ,लेकिन काम ? बहुत बड़ा । बहुत ही बड़ा। इसीसे चलता है समस्त जीवन।सारे संतुलन का आधार - मन। गति ,ऊर्जा , और चेतना से लबालब भरा हुआ।प्रकाश की गति से भी लाखों गुणा इसकी गति।इसी से गति ,इसीसे अगति।लेकिन नाम छोटा - सा :मन।
                       मन के ही साथ चलने वाला शब्द: 'अमन'। अमन अर्थात शांति। इस शांति की सबको विशेष आवश्यकता। लेकि न बिना मन भी तो नहीं जिया जा सकता ! इस विश्लेषण से यह भी तो स्प्ष्ट हुआ कि यदि अमन नाम शांति का है ,तो मन अशांति का नाम होगा ही। यह मन भी आवश्यक और अमन भी आवश्यक। लेकिन यह कैसे हो सकता है ? जब मन है ,तो शांति कहाँ? उसे तो निरंतर चलना ही है। मन के बिना जीवन कहाँ? दुनिया के सारे खेल , नाटक, कला , साहित्य , विज्ञान सब कुछ मन से ही संचालित है। मन शांत तो सब कुछ शांत।जब तक जीवन है , मन ही का आँगन है ,जिसमें जीव आत्मा खेलता है।तन से मन के बाहर हो जाने पर तो अमन ही अमन है। तभी तो दिवंगत आत्मा अथवा जीवात्मा के लिए शांति, परम् शांति की कामना की जाती है। यद्यपि यह परम शांति (अमन) हमारी कामना से नहीं मिल पाती । हम मात्र कामना करने के ही अधिकारी हैं। कामना का सम्बंध भी मन से ही है। मन है तभी तो कामना की जा रही है। यदि यह न होता ,तो कामना भी नहीं हो सकती थी। मन से ही मनन है , चिंतन है , मंथन है।मन से ही आचार है , विचार है ,चाहे वह सद्विचार हो अथवा दुर्विचार! कभी मेरा मन करता है , कभी नहीं करता । कभी लगता है , कभी नहीं भी लगता। कभी मन मर भी जाता है। आदमी शरीर से भले ही जिंदा हो। पर मन के मरने की घोषणा कर देता है।फिर वही मन जिंदा हो जाता है। चमत्कारिक है इंसान का मन । मन की हर धड़कन कुछ कहती है।कभी भी मन ने विश्राम करना नहीं सीखा। माता के गर्भ में पाँच माह के भ्रूण में धड़कना प्रारम्भ करके देह से प्राणों का निष्क्रमण होने तक चलता ही रहता है। वस्तुतः मन नाम ही जीवन का है।
                देह को छोड़ने के बाद मन की आत्मा के साथ विद्यमानता इस बात से सत्य सिद्ध होती है कि मन आत्मा के साथ फिर भी रहता है।क्योंकि उसके बाद जीवित लोगों के द्वारा उस दिवंगत आत्मा की शांति के लिए परम् पिता परमात्मा से प्रार्थना की जाती है कि उस आत्मा को शांति प्रदान करे , जो अपना पार्थिव शरीर छोड़कर उसके पास चली गई है। यदि उस सूक्ष्म आत्मा में मन नहीं होगा तो वह क्योंकर अशांत होगी ? औऱ कैसे शांत हो जाएगी ?यद्यपि यह सब कुछ उसके विगत जीवन के सत या असत कर्मों पर निर्भर करता है।यदि उसके कुछ कर्म करने के लिए शेष रह गए हैं, तो आत्मा अधिक अशांत रहेगी । आत्मगत सूक्ष्म देह की मन की अशांति या शांति का कारण उसके अतीत के कर्म ही हैं। जब तक उस आत्मा का लगाव इस संसार के प्रति रहता है , उसकी अशांति का कम होना संभव नहीं है। शरीर रूपी साधन के बिना वह सूक्ष्म शरीर कुछ भी करने में असमर्थ ही रहता है। उसकी अशांति बढ़ने का एक प्रमुख कारण यह भी है।
             मानव शब्द में भी मन समाहित है । इस मन को मानव से निकाला नहीं जा सकता। जब वह निकल जाता है , तब तो इस शिव देह का शव बन जाता है। फिर उसे कोई मानव नहीं कहता। फिर केवल देह, शरीर, बॉडी , शव - कुछ भी कहें , पर मानव नहीं रह सकता । देह को छोड़ देने के बाद सूक्ष्म शरीर , चाहे वह देव, भूत, प्रेत ,जिन्न , जिस किसी भी योनि में    हो , मन वहाँ भी विद्यमान रहता है। वह सूक्ष्म शरीर इस मन के कारण ही उसी प्रकार के भोग भोगने के लिए उत्सुक रहता है , जिस प्रकार एक जीवित देह में वह विभिन्न ऐच्छिक भोगों को भोगता है।
                मन औऱ अमन के बीच यह सारा संसार झूलता रहता है। मन और अमन का संतुलन ही जीवन है।न केवल मन से ही काम चलना है और न अमन से ही। परम लक्ष्य अवश्य होना चाहिए और है भी। यदि देह छोड़ने के बाद भी शांति नहीं मिली ,तो जीवन की अपूर्णता औऱ 84 लाख यौनियों में भटकाव औऱ किसे कहा जायेगा।
 💐 शुभमस्तु !
 19.03.2020 ◆3.55 अप.

गौरैया और आदमी [ अतुकान्तिका ]


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✍ शब्दकार©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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 मेरे रसोई घर के
मोखे में रखा  है
गौरैया ने एक घोंसला,
इंसानों के बीच
चिड़िया का
देखने योग्य है
 ये हौसला,
उसे पता है कि 
उसे कोई हानि
नहीं पहुँचाएंगे हम,
इसीलिए उसकी
सोच हो गई है 
सम ,
चिड़िया में भी 
नहीं है 
बुद्धिमत्ता  कम।

इधर  - उधर से
बटोरे तिनके 
ज्यों गिन -गिन के
चोंच में खोज कर,
दिन भर की
व्यस्तता , पस्तता,
रात नर्म रेशों , धागों में
आराम मिला।

रख लिए हैं
गौरैया दंपति ने
सहेजकर
चितकबरे चार अंडे,
कभी अचानक
न जाने कैसे 
गिर गए दो 
धरती पर 
टूट गए,
एक नए जीवन से
वंचित हुए,
गौरैया दम्पति के सँग
हमें भी हुआ
बहुत दुःख,
पर क्या करें,
वे थे बड़े ही उदास ,
न चांचल्य , न स्फूर्ति ,
रुक गई ज्यों
जीवन की गति,
न स्वत्व न रति,
पर क्या करें,
नियति के समक्ष
किसका चला है वश?
वक्त बड़े -बड़े 
घाव भर देता है,
सबसे बड़ा मरहम है
ये वक्त ,
जिंदगी जीने का 
सिलसिला 
फिर से चलने लगा है,
यह भी नियति के ही
आदेश का है 
प्रतिफलन!

वह खग- दम्पति
पुनः  शेष अंडों को
सहेजने सँवारने में
लग गए हैं,
प्रतीक्षा है उस दिन की
जब निकलेंगे 
शेष अंडों से
चिचियाते बच्चे,
बिना पंखों के
लाल -लाल 
खिलते गुलाब -से।

अनवरत 
यही है क्रम 
मानव का भी,
घोंसले बनाना ,
सहेजना , सजाना,
 सँवारते रहना ,
गृहस्थी को 
सुधारना,
तिनका -तिनका 
बटोरकर ,
बिखरने से बचाना,
आँधी तूफान से 
बचाना ।

भवितव्य को
 कोई नहीं जानता ,
इंसान का जीवट
कभी रुकावट 
नहीं मानता,
झुकना नहीं जानता,
फिर गौरैया दम्पति
क्यों पीछे रहे ?
उसने भी 
सीख लिया है,
अहर्निश
चरैवेति !चरैवेति !!

💐 शुभमस्तु !
19.03.2020 ●11.45पूर्वाह्न।

इसको कहते हैं वसंत [ गीत ]


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✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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इसको  कहते  हैं  वसंत सब ,
वही  आज   रँग   लाया   है।
चैत्र  और   वैशाख  मास  में,
कण -कण को  महकाया है।।

होली   जो  होनी  थी  हो ली,
श्रीगणेश   कर    जाती    है।
नई   चेतना  जड़ - चेतन  में,
हर  पल ही  भर  जाती  है।।
खिला रूप-यौवन गोरी का ,
तन -मन  को  चमकाया  है।
इसको कहते हैं  वसंत  सब,
वही  आज  रँग  लाया  है।।

मौर  बाँध  फूलों का सिर पर,
ये   ऋतुराज    विराज    रहे।
धनुषबाण सुमनों से सज्जित,
मौन   मधुर   आवाज   गहे।।
गेंदा , टेसू   है    गुलाब   भी,
पुष्पों    की      मधु माया है।
इसको कहते  हैं  वसंत  सब,
वही  आज  रँग   लाया  है।।

स्वागत-गान गा रहा कोकिल,
भँवरे      लोरी     गाते     हैं।
तितली  साड़ी बदल नाचती,
तरु -  कोंपल    मुस्काते  हैं।।
बिना स्वरों  के तीर चल रहे,
यौवन  लक्ष्य    बनाया   है।
इसको  कहते हैं  वसंत सब,
वही  आज    रँग  लाया है।।

इक्षुदंड   की  नव   कमान है ,
मधु  से    निर्मित   डोरी   है।
आम्रबौर सित नील कमल के
बाण, रसों   की   होरी    है।।
कामदेव  रति   देवी के  सँग,
जड़ -  चेतन    सरसाया   है।
इसको कहते  हैं वसंत   सब ,
वही  आज   रँग   लाया  है।।

नव पल्लव किसलयमुख झाँकें,
पीपल     कीकर     हरिआए।
ब्रज की हर करील  कुंजों  में,
लाल  सुमन  बहु    मुस्काए।।
'शुभम' श्याम राधा के उर में,
रस  - आनंद     सुहाया   है।
इसको  कहते हैं  वसंत  सब,
वही   आज  रँग   लाया   है।।

💐 शुभमस्तु !

१४.०३.२०२० , ६.३० अपराह्न

शस्य -बहार [ कुंडलिया ]


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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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  1
 पत्ती- पत्ती  नाचती,   फूल - फूल मुस्कान।
डाली  -   डाली पर बजी,सुघर सजीली तान।
सुघर    सजीली तान,फुदकती बुलबुल प्यारी।
 किसलय  थे जो बंद, सद्य   है सुषमा न्यारी।
'शुभम'   मनोहर रूप,छा   रही मादक मस्ती।
 ऋतुपति        का         शृंगार, सिहरती पत्ती

  2
बाली    नव गोधूम की,नाचे कटि लचकाय।
एक   साथ हर खेत में,पवन संग लहराय।।
पवन     संग लहराय,दूध  दानों में  भरता।
दाने  का रँग- रूप ,सुनहरी   रंग निखरता।।
'शुभम' होलिका बाद,धजा ही अलग निराली।
जौ के  सँग  में   झूम,   नाचती  गेहूँ बाली।।

  3
पीले   पुष्प  पराग को,ले जाते मधु   कीट।
चिपका   कर पर पैर में,नर से देते   छींट।।
नर से   देते    छींट ,परागण  अन जाने ही।
मादा का  सौभाग्य, प्रकृतिगत कृत्य सनेही।
'शुभम'  सुमन वन बाग, लाल वासंती नीले।
आकर्षण    का मोह,    महकते पीले - पीले।।

   4
तीखुर बाली  पर सजे, जैसे सिर पर मौर।
रक्षा करते रात- दिन, नीचे विकसित बौर।।
नीचे विकसित बौर,पीत रँग में चंदन- सा।
खींच    रहा मधुकीट, वंदना में वंदन- सा।।
'शुभम'  प्रकृति का खेल,अबूझा है बलशाली।
नाच    रहे  हैं खेत,  लदी  हैं तीखुर-बाली।।

5
फूल    बैंजनी   धार सिर ,  चने नाचते खेत।
हरी    चदरिया ओढ़ के,  झूमे सिर समवेत।
झूमे  सिर   समवेत, मटर  की फूली फलियाँ।
कली   बैंजनी श्वेत, खिल रहीं कर रँगरलियाँ।
'शुभम'  प्रकृति का नेह,बज रहीं झन्न पैंजनी।
चना    मटर  के  सेत,   झूमते    फूल बैंजनी।।

💐 शुभमस्तु!

16.03.2020◆6.30 अप

कोरोना - काव्य [ दोहा ]


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 ✍ शब्दकार©
🐧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कुदरत  का दुश्मन बना, दुनिया का इंसान।
जिंदा   मुर्दा जीव खा, उदर बना  श्मशान।।

प्रकृति   विरोधी नर बना,नष्ट किए वन बाग।
अनावृष्टि   सूखा बढ़े , मिटता स्वयं  सुहाग।।

प्रकृति मौन कब तक सहे, मानव अत्याचार।
लेती   है   प्रतिशोध वह करता नहीं   विचार।।

चूहे,    बिल्ली,  साँप  खा,  खाए गदहे श्वान।
चमगादड़,   झींगा,  महिष,खाता नर हैवान।।

चीन  देश    की  भूमि पर,है वह शहर वुहान।
जहाँ  जीव    आहार  की, मंडी  का  है  थान।।

कोरोना      को  जन्म दे,जूझ रहा  है चीन।
दुनिया  में संकट  बढ़ा, जानें लेता   छीन।।

दुहता   है जो प्रकृति को,दहता उसकी आग।
बचकर  छिप पाए कहाँ, भाग सके तो भाग।।

हाथ      हजारों   धो पड़ा,  पीछे तेरे  आज।
या   तू   छोड़े   देह  को,  जाएँ तेरे  नाज।।

छुओ   नेत्र या वदन को,अथवा अपनी नाक।
हाथों   को धो डालिए, करलो झटपट पाक।।

ज्वर खाँसी सिरदर्द हो ,या हो तेज जुकाम।
सावधान  इनसे  रहें ,  डरें   नहीं  बेकाम।।

'शुभम'मनोबल सबल हो ,इच्छाशक्ति प्रगाढ़।
दूर    रहेगी  रुग्णता,   बह  जाएगी  बाढ़।।

💐 शुभमस्तु !

15.03.2020◆9.00अप.

गोल ही गोल [ बाल कविता ]


★★★★★★★★★★★★★
✍ शब्दकार©
🔰 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
★★★★★★★★★★★★★
सूरज     गोल    चंदा  गोल।
धरती ,   अंबर , तारे  गोल।।

गाड़ी     के   पहिए  हैं गोल।
गेंद     हमारी  सबसे  गोल।।

मुरगी   का  अंडा  भी  गोल।
माताजी   का   बेलन  गोल।।

ढोल,   नगाड़े,  ढप   हैं  गोल।
तबला  और   मंजीरा  गोल।।

पंखे     के  चक्कर  भी  गोल।
घूम   रहीं  दो सुइयाँ   गोल।।

आँखों  की  दो  पुतली  गोल।
आलू   और   टमाटर   गोल।।

सेव ,   संतरा ,  चीकू    गोल।
शिव   शंकर की पिंडी  गोल।।

बिना  लिखे   नम्बर भी गोल।
खुली   पढ़ाई की  सब  पोल।।

सोच समझ  कर मुख से बोल।
बोल    तभी  जब पहले तोल।।

होली     आई    ले   रँग  घोल।
अपने     उर को  ले   तू  खोल।।

'शुभम '  आचरण  है अनमोल।
चक्र    सुदर्शन   की  जय बोल।।

💐 शुभमस्तु !

15.03.2020 ★11.00पूर्वाह्न।

सोना [ चौपाई ]


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✍ शब्दकार ©
🏆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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थकी      देह  मानव  जब  सोता।
सुख का अनुभव उसको होता।।

जीवन    को  क्या    दोगे धोखा ?
झाँक - झाँक निज गला झरोखा।।

आधे     दिन    हैं    आधी   रातें।
बढ़ -   चढ़कर   मत करना बातें।।

अल्प    जागरण  ज्यादा  सोना।
इसी     बात  का  तो   है  रोना।।

सोना !   सोना !!   सोना !!! सोना।
ज्यादा     सोना    ज्यादा  रोना।।

कहता         हूँ    ए  इंसां !   सो  ना!
नहीं      बीज      कीकर   के बोना।।

सोने     की      चिंता    में  जीता।
लगा   चैन   को    नित्य पलीता।।

लाया    साथ     न  ले   जा  पाए।
छूटे     देह       बहुत    पछताए।।

आँखें     चुंधिआएँ       सोने   से।
नहीं   सुनी ध्वनि  उर - कोने से।।

देख  -     देख  सोने    को  जीता।
चमक -  चौंध  में  जीवन बीता।।

'शुभम '    परिधि  के   भीतर होना ।
लोहा,    चाँदी,         ताँबा,   सोना।।

💐 शुभमस्तु !

12.03.2020 ◆10.00 पूर्वाह्न।

शनिवार, 14 मार्च 2020

इसको कहते हैं वसंत [ गीत ]


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✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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इसको  कहते  हैं  वसंत सब ,
वही   आज   रँग   लाया   है।
चैत्र   और   वैशाख  मास  में,
कण - कण को  महकाया है।।

होली    जो  होनी  थी  हो ली,
श्रीगणेश    कर    जाती    है।
नई   चेतना  जड़ - चेतन  में,
हर   पल ही   भर  जाती  है।।
खिला  रूप - यौवन गोरी का ,
तन - मन  को  चमकाया  है।
इसको   कहते हैं  वसंत  सब,
वही    आज   रँग  लाया  है।।

मौर    बाँध  फूलों का सिर पर,
ये    ऋतुराज    विराज    रहे।
धनुष बाण सुमनों से सज्जित,
प्रकृति   ने    सब   नाज  सहे।।
गेंदा ,  टेसू     है    गुलाब   भी,
पुष्पों      की       मधु माया है।
इसको   कहते  हैं  वसंत  सब,
वही     आज    रँग   लाया  है।।

स्वागत-गान गा रहा कोकिल,
भँवरे       लोरी       गाते     हैं।
तितली   साड़ी  बदल नाचती,
तरु -   कोंपल     मुस्काते  हैं।।
बिना   स्वरों  के तीर चल रहे,
यौवन    लक्ष्य      बनाया   है।
इसको    कहते   हैं  वसंत सब,
वही    आज     रँग  लाया है।।

इक्षुदंड     की   नव   कमान है ,
मधु   से    निर्मित   डोरी   है।
आम्र-बौर  सित नील कमल के
बाण,  रसों    की    होरी    है।।
कामदेव   रति देवी   के  सँग,
जड़ -   चेतन     सरसाया   है।
इसको   कहते  हैं वसंत   सब ,
वही    आज   रँग   लाया  है।।

  नव पल्लव किसलय मुख झाँकें,
 पीपल         कीकर       हरिआए।
ब्रज  की    हर  करील   कुंजों  में,
लाल    सुमन    बहु    मुस्काए।।
'शुभम'   श्याम   राधा के उर में,
रस    -  आनंद      सुहाया    है।
इसको     कहते   हैं  वसंत  सब,
वही      आज    रँग      लाया   है।।

💐 शुभमस्तु !

14.03.2020 ◆6.30 अप.

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