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✍ शब्दकार ©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कोई
रंग उड़ाता है,
किसी का रंग
उड़ता है,
रंग में भंग
पड़ता है,
किसी पर रंग
चढ़ता है।
रंग खेलता है
कोई ,
रंग पर रंग
उँड़ेलता है कोई,
रंग बदल
लेते हैं ,
लोग गिरगिटवत,
रंग चेहरे का
उड़ता है।
होली
रंगों की बहार है,
गले से गले
मिलने का
प्यार है,
दिलों का इक़रार है,
सिहराती गुनगुनाती
फुहार है।
कहीं रँग -रस बरसे,
कोई
तर -बतर हरषे,
विरहिणी
अकेली तरसे,
फ़ागुन - चैत्र
सरसे।
रँगा हुआ
है सियार,
करता है
कब विचार!
वह आदतन
ही लाचार,
एक की
चार -चार।
रंग लाल
कहीं पीत,
कहीं हार
कहीं जीत,
कोई शत्रु
कोई मीत,
चलचित्र -सी
है रीत।
रंग काले
दुग्ध श्वेत,
हरे -भरे
सब खेत,
'शुभम'
चेत - चेत ,
निज भावी के
हेत।
💐 शुभमस्तु !
05.03.2020 ◆12.30 अप.
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