गुरुवार, 5 मार्च 2020

रंग [ अतुकान्तिका ]


★★★★★★★★★★★★ 
✍ शब्दकार ©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
★★★★★★★★★★★★★
 कोई
रंग उड़ाता है,
किसी का रंग 
उड़ता है,
रंग में भंग
पड़ता है,
किसी पर रंग
चढ़ता है।

रंग खेलता है
कोई ,
रंग पर रंग 
उँड़ेलता है कोई,
रंग बदल 
लेते हैं ,
लोग गिरगिटवत,
रंग  चेहरे का 
उड़ता है।

होली 
रंगों की बहार है,
गले से गले 
मिलने का 
प्यार है,
दिलों का इक़रार है,
सिहराती गुनगुनाती
फुहार है।

कहीं रँग -रस बरसे,
कोई 
तर -बतर हरषे,
विरहिणी
अकेली तरसे,
फ़ागुन - चैत्र
सरसे।

रँगा हुआ 
है सियार,
करता है 
कब विचार!
वह आदतन 
ही लाचार,
एक की
चार -चार।

रंग लाल 
कहीं पीत,
कहीं हार
कहीं जीत,
कोई शत्रु
कोई मीत,
 चलचित्र -सी 
है रीत।

रंग काले 
दुग्ध श्वेत,
हरे -भरे
सब खेत,
'शुभम'
चेत - चेत ,
निज भावी के
हेत।

💐 शुभमस्तु !

05.03.2020 ◆12.30 अप.

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