गुरुवार, 19 मार्च 2020

सोना [ चौपाई ]


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✍ शब्दकार ©
🏆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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थकी      देह  मानव  जब  सोता।
सुख का अनुभव उसको होता।।

जीवन    को  क्या    दोगे धोखा ?
झाँक - झाँक निज गला झरोखा।।

आधे     दिन    हैं    आधी   रातें।
बढ़ -   चढ़कर   मत करना बातें।।

अल्प    जागरण  ज्यादा  सोना।
इसी     बात  का  तो   है  रोना।।

सोना !   सोना !!   सोना !!! सोना।
ज्यादा     सोना    ज्यादा  रोना।।

कहता         हूँ    ए  इंसां !   सो  ना!
नहीं      बीज      कीकर   के बोना।।

सोने     की      चिंता    में  जीता।
लगा   चैन   को    नित्य पलीता।।

लाया    साथ     न  ले   जा  पाए।
छूटे     देह       बहुत    पछताए।।

आँखें     चुंधिआएँ       सोने   से।
नहीं   सुनी ध्वनि  उर - कोने से।।

देख  -     देख  सोने    को  जीता।
चमक -  चौंध  में  जीवन बीता।।

'शुभम '    परिधि  के   भीतर होना ।
लोहा,    चाँदी,         ताँबा,   सोना।।

💐 शुभमस्तु !

12.03.2020 ◆10.00 पूर्वाह्न।

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