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✍ शब्दकार ©
🏆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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थकी देह मानव जब सोता।
सुख का अनुभव उसको होता।।
जीवन को क्या दोगे धोखा ?
झाँक - झाँक निज गला झरोखा।।
आधे दिन हैं आधी रातें।
बढ़ - चढ़कर मत करना बातें।।
अल्प जागरण ज्यादा सोना।
इसी बात का तो है रोना।।
सोना ! सोना !! सोना !!! सोना।
ज्यादा सोना ज्यादा रोना।।
कहता हूँ ए इंसां ! सो ना!
नहीं बीज कीकर के बोना।।
सोने की चिंता में जीता।
लगा चैन को नित्य पलीता।।
लाया साथ न ले जा पाए।
छूटे देह बहुत पछताए।।
आँखें चुंधिआएँ सोने से।
नहीं सुनी ध्वनि उर - कोने से।।
देख - देख सोने को जीता।
चमक - चौंध में जीवन बीता।।
'शुभम ' परिधि के भीतर होना ।
लोहा, चाँदी, ताँबा, सोना।।
💐 शुभमस्तु !
12.03.2020 ◆10.00 पूर्वाह्न।
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