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✍ शब्दकार ©
💞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आजा रे ! रँगरसिया आजा!
कोरी चूनर आय भिगाजा।।
रितु वासंती जब सों लागी।
हिय में हूल देह में आगी।।
बनिकें बदरा तन पै छाजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
दिवस न चैन रैन नहिं निंदिया।
तो बिन सोह न काजर बिंदिया।।
फ़ागुन में रँग - रस बरसाजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
सब खेलति निज पी सँग होरी।
हों रूखी कोरी की कोरी।।
अँगिया - आगी आय बुझाजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
गालनु कौन गुलाल लगावै।
तू आवै तौ चाह पुरावै।।
गुझिया भरी धरी आ खाजा।
आजा रे! रँगरसिया आजा।।
भरे थार पकबान धरे हैं।
बिन तोरे हम मरे परे हैं।।
नमकीनहु कौ स्वाद बताजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
गेंदा औरु गुलाबु महकतौ।
वन मां टेसू फूलु दहकतौ।।
छाँड़ि जगत के सिगरे काजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
मेला जुरै तीज कौ भारी।
झूला झूलें सखियाँ सारी।।
अपने ढिंग बैठारि झुलाजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
फूल - फूल भँवरा मँडराए।
मोरे स्याम अबहुँ नहिं आए।।
स्यामसखी कूँ भूलि न राजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
जो जीवै सो फ़ाग खेलतौ।
पिचकारी की धार झेलतौ।।
तोसे मेरौ 'शुभम' तकाज़ा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।
शुभमस्तु !
०२.०३.२०२० , १.३० अपराह्न्
शुभमस्तु !
०२.०३.२०२० , १.३० अपराह्न्
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