मंगलवार, 3 मार्च 2020

आजा रे! रँगरसिया आजा [ होली - गीत ]


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✍ शब्दकार ©
💞  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आजा  रे !  रँगरसिया  आजा!
कोरी चूनर  आय   भिगाजा।।

रितु  वासंती  जब  सों  लागी।
हिय   में   हूल देह में  आगी।।
बनिकें    बदरा  तन  पै छाजा।
आजा   रे ! रँगरसिया  आजा।।

दिवस  न चैन रैन नहिं निंदिया।
तो बिन सोह न काजर बिंदिया।।
फ़ागुन    में रँग - रस बरसाजा।
आजा     रे ! रँगरसिया  आजा।।

सब  खेलति  निज  पी  सँग होरी।
हों    रूखी   कोरी    की  कोरी।।
अँगिया -  आगी  आय बुझाजा।
आजा   रे !   रँगरसिया  आजा।।

गालनु   कौन  गुलाल  लगावै।
तू    आवै     तौ   चाह  पुरावै।।
गुझिया   भरी धरी आ खाजा।
आजा   रे!  रँगरसिया  आजा।।

भरे    थार    पकबान   धरे हैं।
बिन  तोरे   हम   मरे  परे  हैं।।
नमकीनहु  कौ स्वाद बताजा।
आजा रे   ! रँगरसिया  आजा।।

गेंदा औरु   गुलाबु  महकतौ।
वन मां  टेसू  फूलु  दहकतौ।।
छाँड़ि जगत के सिगरे काजा।
आजा रे ! रँगरसिया  आजा।।

मेला   जुरै   तीज  कौ  भारी।
झूला   झूलें   सखियाँ  सारी।।
अपने   ढिंग  बैठारि  झुलाजा।
आजा  रे ! रँगरसिया  आजा।।

फूल   -  फूल भँवरा  मँडराए।
मोरे स्याम अबहुँ नहिं आए।।
स्यामसखी कूँ भूलि न राजा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।

जो   जीवै  सो  फ़ाग  खेलतौ।
पिचकारी   की  धार  झेलतौ।।
तोसे    मेरौ  'शुभम'  तकाज़ा।
आजा रे ! रँगरसिया आजा।।

शुभमस्तु !
०२.०३.२०२० , १.३० अपराह्न्

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