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✍ शब्दकार©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दुःख सुख जीवन के
दो चेहरे हैं,
दुःख सुख पर
किसके पहरे हैं?
देवनागरी अपनी
लिपि में
पहले द है,
फिर बहुत
बाद में स है,
चौदह सोपानों के
नीचे ,
सुख अपनी
बाँहें भींचे,
थोड़ा -सा सुख
ज्यादा ही दुःख,
यह जीवन की
परिभाषा है,
पहले दुःख है
फिर सुख आता है।
जनती माँ की
वेदना प्रसव,
पर सहती है
पहले दुःख सब,
रोता है शिशु
मुस्काती वह!
जीवन का
ऐसा ही कुछ क्रम,
पर होता है
मानव को
नित भ्रम,
दुःख सुख की
प्रहेलिका है जीवन,
क्या आदि अंत
क्या उधड़ी सीवन।
💐शुभमस्तु !
06.03.2020 ◆8.35 पूर्वाह्न।
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