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✍ शब्दकार©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बारहों मास
रंगों का उल्लास,
सबकी है
अपनी सुवास,
कभी वर्षा की फुहार,
कभी होता मधुमास।
चैत्र वैशाख में
वसंत की धूम ,
कलियों को चूमते
भँवरे घूम झूम- झूम,
कोयल की कुहू कुहू,
मधुरतम गूँज,
महुए की गमक रही
धरती को चूम,
बौराते हैं आम ,
पीपल ललिताभ।
नर -नारी के
तन -मन में
मन्मथ का वेग,
होली के रंगों का
पावन प्रवेग,
विवशता वियिगिनी की
बढ़ाती वियोग,
कैसे हो साजन से
सजनि का संयोग,
तप्त है तन -मन
ज्यों आतप की फ़ौज,
जड़ -चेतन करते हैं
आनन्द की खोज।
जेठ और आषाढ़ का
अपना अलग रूप,
तपती हुई धरती
सूखे हुए कूप,
उड़ती हुई धूल ,
हरिआते बबूल ,
सूर्यातप प्रतिकूल,
चुभते हुए शूल।
सावन और भाद्र,
धरती हुई आर्द्र,
बरसते हैं मेघ ,
झंझा -झकोर तेज,
गाती नारियाँ मल्हार,
राखी का त्यौहार ,
अपना ही रंग
अपनी ही बहार।
झुक गया आकाश,
प्यासी धरती के पास,
भर रहा है साँस,
क्यों धरती हो उदास ?
दीर्घ तृप्ति का आभास,
अंकुराई हरी घास,
जोते हुए खेत से
उठी सौंधी -सौंधी सुवास,
इसी की थी आस।
क्वार फिर कार्तिक
शरद का सुहास ,
निर्मल नीला आकाश,
नदी में कलरव कुछ खास,
हँसता मुस्कराता किसान,
आई खेती में जान,
आन -मान और शान,
फसल झूमती लय तान।
अगहन और पौष,
बढ़ी हिम भरी हौंस,
हेमंत ले तुषार,
अपने पाँवों को पसार,
आया छाया खेत द्वार,
श्वेत कोहरे का रंग ,
जीव - जंतु बड़े तंग,
धूप की चाह - उमंग,
या घर में हों बंद।
माघ मास सीत्कार,
नित शिशिर की पुकार,
उच्च पर्वत मैदान,
शीत तुहिन का वितान,
आया फ़ागुन का फाग,
गाता आया रंग - राग।
उतरा ठंड का खुमार,
गया शीत हार -हार,
रंग -रंग की बौछार,
देख राधेश्याम प्यार,
करें गोरी मनुहार,
है वसंत का सुहास,
यही राजा मधुमास।
💐 शुभमस्तु !
12.03.2020 ◆1.30 अप.
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