गुरुवार, 5 मार्च 2020

होरी:तूलिका बहुविधा मंच (भाग:2) [ दोहा ]


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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'🌾
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   18
देखि   हर्ष की  छवि नई,साली हर्ष मनाएं।
गोबर   थापें  मूड़ पै, रँग  लपेटि   इतरायं ।।

   19
हलधर   मस्त  मलंग से,फाटो कुर्ता धार।
साली  से कहने लगे ,अब आजा रँग डार।।

    20
'मुकुट'  बँधायौ सूप कौ,मन में रंग उमंग।
जयपुर   से मथुरा चले, देखें लठा  हुरंग।।
                           
    21
देश - गली में घूमते,अपने  त्रिबल सकार।
कोई  डारै  रंग  तौ,    मेरौ  नहीं   नकार।।

      22
गुझिया पापड़ देखि कें,टपकी जिनकी लार।
भीमराव कहते उन्हें, करते   सबकूँ प्यार।।

   23
पत्नी  से नजरें बचा, निकरे  कुँवर दिनेश।
लगा  मुखौटा सीस पै  ,बदल लियौ है वेश।।

   24
 बारहमासी    खेलते,  होली सत्यप्रसन्न।
साली  सँग पकड़े गए,बीबीजी हैं सन्न।।

 25
होरी पै   तौ छोड़ि  दै, अपनों तत्त्तु सुशील।
हाथु पकरि   साली कहे, दै दै जीजा ढील।।

   26
श्याम मनोहर गा रहे,नचि नचि होरी गीत।
साली रंग उलीचती,  लाल  हरौ  औ'  पीत।।

 27
गौरी  शंकर सों कहें, चलौ आजु ब्रजधाम।
राधा   सों रँग खेलते , होरी बहियाँ  थाम।।

    28
लैलूँगा    में   बैठि कें, संजय  जी बहिदार।
साली  सँग मुजरा करें,साड़ी पै  रंग डार।।

                            29
मदन  कहौ मोहन कहौ,खिलौ फूल अरविंद।
बरसाने में  खेलतौ , नित गोपिन  के  संग।।

      30
बिन विवेक  होरी नहीं,मिलें न मधुकर फूल।
साली के सँग खेलियौ,मति पत्नीकूँ भूल।।

      31
संतोषी   सबसे सुखी ,  कहते कवि संतोष।
बचौ  होय तौ रँगि हमें, दै -दै अधरनु बोस।।

   32
कौशल जी  रँग खेलते, करते कृषी सुजान।
जीवनदर्शनलिख रहे,कहते कवी किसान।।

     33
मंच  बहुविधा तूलिका  ,  होरी रहै अखंड।
'शुभम'शुभम सब्कूँ कहे,रचि के दोहा छंद।

    34
बुरौ न   कोई  मानियौ, परौ   न रंग   गुलाल।
नाचिकूदि रँग खेलियौ, करियौ खूब धमाल।।

   35
बहना  भौजी मात कूँ,  करतौ शुभम प्रनाम।
खुशियाँ  सिगकूँ  बाँटतौ, जय श्रीराधेश्याम।।

💐 शुभमस्तु !

04.03.2020 ◆5.30 अप.

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