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✍ शब्दकार©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मेरे रसोई घर के
मोखे में रखा है
गौरैया ने एक घोंसला,
इंसानों के बीच
चिड़िया का
देखने योग्य है
ये हौसला,
उसे पता है कि
उसे कोई हानि
नहीं पहुँचाएंगे हम,
इसीलिए उसकी
सोच हो गई है
सम ,
चिड़िया में भी
नहीं है
बुद्धिमत्ता कम।
इधर - उधर से
बटोरे तिनके
ज्यों गिन -गिन के
चोंच में खोज कर,
दिन भर की
व्यस्तता , पस्तता,
रात नर्म रेशों , धागों में
आराम मिला।
रख लिए हैं
गौरैया दंपति ने
सहेजकर
चितकबरे चार अंडे,
कभी अचानक
न जाने कैसे
गिर गए दो
धरती पर
टूट गए,
एक नए जीवन से
वंचित हुए,
गौरैया दम्पति के सँग
हमें भी हुआ
बहुत दुःख,
पर क्या करें,
वे थे बड़े ही उदास ,
न चांचल्य , न स्फूर्ति ,
रुक गई ज्यों
जीवन की गति,
न स्वत्व न रति,
पर क्या करें,
नियति के समक्ष
किसका चला है वश?
वक्त बड़े -बड़े
घाव भर देता है,
सबसे बड़ा मरहम है
ये वक्त ,
जिंदगी जीने का
सिलसिला
फिर से चलने लगा है,
यह भी नियति के ही
आदेश का है
प्रतिफलन!
वह खग- दम्पति
पुनः शेष अंडों को
सहेजने सँवारने में
लग गए हैं,
प्रतीक्षा है उस दिन की
जब निकलेंगे
शेष अंडों से
चिचियाते बच्चे,
बिना पंखों के
लाल -लाल
खिलते गुलाब -से।
अनवरत
यही है क्रम
मानव का भी,
घोंसले बनाना ,
सहेजना , सजाना,
सँवारते रहना ,
गृहस्थी को
सुधारना,
तिनका -तिनका
बटोरकर ,
बिखरने से बचाना,
आँधी तूफान से
बचाना ।
भवितव्य को
कोई नहीं जानता ,
इंसान का जीवट
कभी रुकावट
नहीं मानता,
झुकना नहीं जानता,
फिर गौरैया दम्पति
क्यों पीछे रहे ?
उसने भी
सीख लिया है,
अहर्निश
चरैवेति !चरैवेति !!
💐 शुभमस्तु !
19.03.2020 ●11.45पूर्वाह्न।
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