गुरुवार, 5 मार्च 2020

होरी:तूलिका बहुविधा मंच (भाग:1) [ दोहा ]


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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'🌾
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   1
पंच     मुरारी कहि रहे,रहु साली   जी दूर।
पावँ   तिहारे छू रहौ,  देखि तिहारौ   नूर।।

   2
श्यामस  नेही लाल    की,साली  गोरी चार।
पकरि कमरिया करि रहीं,रंगनु की बौछार।।

   3
राम सनेही  लाल जी,दुबकि गए घर  माँहिं।
पिचकारी रँग की परी, करत नाँहिं ही नाँहिं।।

    4
खुद  अपने मूँ रंग मलि,कहते प्रिय राकेश।
रँगे  रँगाए पै मती,   लगा  रंग, का   शेष??

  5
अबलों   भूले नाँहिं कछु,रामनिवास 'अधीर'।
साली   जी की याद में ,उठति हिये में पीर।।

   6
साली  'सरस' लुभावनी, काटि  गई  रे गाल।
कहा बताऊँ शेष जी,गज गामिनि की चाल।। 
   
 7
 गोरी   ठा ड़ी  हँसि रही,  दै  दाँतनु पट छोर।
हो हो    होरी   है गई  ,भयौ नगर मां  शोर।।

  8
शेषपाल   की लेखनी, ली  साली नें छीन।
पीछें   दौ रे जा रहे , ताक धिना धीं धींन।।

  9
कारौ   रँगु कर  पोति कें,  साली आई  एक।
रगड़ि   मूँड़ पै भजि गई, शिवानंद के नेंक।।

     10
मेरी  अम्मा नें धरौ, नामु कुँवर विमलेश।
कारे   - पी रे मति   करै, गोरी  भूरे केश।।

     11
नौंन भरौ  गुझिया लिए, आईं साली  तीन।
उठा धवल खाने लगे,गुझिया उनसे छीन।।

   12
दोहाकार  मयंक जी,त्रिफला पुड़िया थाम।
होरी  खेलनु   कूँ गए, साली जी के गाम।।

  13
कासगंज  की गैल में, मिले भ्रमर जी नेक।
जौ सालीमिलि जाय तौ,खेलें बिना विवेक।।
  
  14
रंग गगरिया सिर धरी,'सागर' बढ़ते जाएँ।
पहले   पत्नी तौ मिलै ,तब साली कूँ पायँ।।

  15
डंडा   लै  कें हाथ में , निकरे  हैं आलोक।
होरी   खेलें आजु हम,रोक सकै तौ रोक।।


    16
छोड़  नवोदय चलि दये,मथुरा जी आनन्द।
बिना  रँगे छोड़ें नहीं ,  साली कौ  मुखचंद।।

   17
खोए गूढ़   खयाल में ,  होरी  कौ इतिहास।
अमरनाथ  लक्ष्मणपुरी, साली गंध सुवास।।

💐 शुभमस्तु !

04.03.2020 ◆5.30 अप.

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