गुरुवार, 19 मार्च 2020

इसको कहते हैं वसंत [ गीत ]


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✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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इसको  कहते  हैं  वसंत सब ,
वही  आज   रँग   लाया   है।
चैत्र  और   वैशाख  मास  में,
कण -कण को  महकाया है।।

होली   जो  होनी  थी  हो ली,
श्रीगणेश   कर    जाती    है।
नई   चेतना  जड़ - चेतन  में,
हर  पल ही  भर  जाती  है।।
खिला रूप-यौवन गोरी का ,
तन -मन  को  चमकाया  है।
इसको कहते हैं  वसंत  सब,
वही  आज  रँग  लाया  है।।

मौर  बाँध  फूलों का सिर पर,
ये   ऋतुराज    विराज    रहे।
धनुषबाण सुमनों से सज्जित,
मौन   मधुर   आवाज   गहे।।
गेंदा , टेसू   है    गुलाब   भी,
पुष्पों    की      मधु माया है।
इसको कहते  हैं  वसंत  सब,
वही  आज  रँग   लाया  है।।

स्वागत-गान गा रहा कोकिल,
भँवरे      लोरी     गाते     हैं।
तितली  साड़ी बदल नाचती,
तरु -  कोंपल    मुस्काते  हैं।।
बिना स्वरों  के तीर चल रहे,
यौवन  लक्ष्य    बनाया   है।
इसको  कहते हैं  वसंत सब,
वही  आज    रँग  लाया है।।

इक्षुदंड   की  नव   कमान है ,
मधु  से    निर्मित   डोरी   है।
आम्रबौर सित नील कमल के
बाण, रसों   की   होरी    है।।
कामदेव  रति   देवी के  सँग,
जड़ -  चेतन    सरसाया   है।
इसको कहते  हैं वसंत   सब ,
वही  आज   रँग   लाया  है।।

नव पल्लव किसलयमुख झाँकें,
पीपल     कीकर     हरिआए।
ब्रज की हर करील  कुंजों  में,
लाल  सुमन  बहु    मुस्काए।।
'शुभम' श्याम राधा के उर में,
रस  - आनंद     सुहाया   है।
इसको  कहते हैं  वसंत  सब,
वही   आज  रँग   लाया   है।।

💐 शुभमस्तु !

१४.०३.२०२० , ६.३० अपराह्न

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