गुरुवार, 12 मार्च 2020

सोना [ चौपाई ]


◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
✍ शब्दकार ©
🏆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●

थकी    देह  मानव  जब  सोता।
सुख का अनुभव उसको होता।।

जीवन    को  क्या    दोगे धोखा ?
झाँक - झाँक निज गला झरोखा।।

आधे     दिन     हैं    आधी   रातें।
बढ़ -  चढ़कर  मत करना बातें।।

अल्प      जागरण  ज्यादा  सोना।
इसी     बात   का  तो   है  रोना।।

सोना !   सोना !!   सोना !!! सोना।
ज्यादा       सोना      ज्यादा  रोना।।

कहता       हूँ    ए  इंसां !   सो  ना!
नहीं     बीज      कीकर   के बोना।।

सोने       की    चिंता    में  जीता।
लगा    चैन   को    नित्य पलीता।।

सोने         वाले       खाते    रोटी।
हल्की ,     भारी    या हो   मोटी।।

लाया    साथ     न  ले   जा  पाए।
छूटे    देह       बहुत    पछताए।।

आँखें       चुंधिआएँ      सोने   से।
नहीं सुनी ध्वनि  उर - कोने से।।

देख    -   देख    सोने   को  जीता।
चमक -   चौंध  में  जीवन बीता।।

'शुभम'    परिधि  के   भीतर होना ।
लोहा,     चाँदी,         ताँबा,   सोना।।

💐 शुभमस्तु !

12.03.2020 ◆10.00 पूर्वाह्न

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...