गुरुवार, 19 मार्च 2020

कोरोना - काव्य [ दोहा ]


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 ✍ शब्दकार©
🐧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कुदरत  का दुश्मन बना, दुनिया का इंसान।
जिंदा   मुर्दा जीव खा, उदर बना  श्मशान।।

प्रकृति   विरोधी नर बना,नष्ट किए वन बाग।
अनावृष्टि   सूखा बढ़े , मिटता स्वयं  सुहाग।।

प्रकृति मौन कब तक सहे, मानव अत्याचार।
लेती   है   प्रतिशोध वह करता नहीं   विचार।।

चूहे,    बिल्ली,  साँप  खा,  खाए गदहे श्वान।
चमगादड़,   झींगा,  महिष,खाता नर हैवान।।

चीन  देश    की  भूमि पर,है वह शहर वुहान।
जहाँ  जीव    आहार  की, मंडी  का  है  थान।।

कोरोना      को  जन्म दे,जूझ रहा  है चीन।
दुनिया  में संकट  बढ़ा, जानें लेता   छीन।।

दुहता   है जो प्रकृति को,दहता उसकी आग।
बचकर  छिप पाए कहाँ, भाग सके तो भाग।।

हाथ      हजारों   धो पड़ा,  पीछे तेरे  आज।
या   तू   छोड़े   देह  को,  जाएँ तेरे  नाज।।

छुओ   नेत्र या वदन को,अथवा अपनी नाक।
हाथों   को धो डालिए, करलो झटपट पाक।।

ज्वर खाँसी सिरदर्द हो ,या हो तेज जुकाम।
सावधान  इनसे  रहें ,  डरें   नहीं  बेकाम।।

'शुभम'मनोबल सबल हो ,इच्छाशक्ति प्रगाढ़।
दूर    रहेगी  रुग्णता,   बह  जाएगी  बाढ़।।

💐 शुभमस्तु !

15.03.2020◆9.00अप.

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