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✍ शब्दकार©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अफ़वाहों का बाज़ार गरम है।
हुआ आदमी बिना शरम है।
सबको लाले पड़े जान के ,
फैलाते कुछ यहाँ भरम हैं।
राजनीति लाशों पर करते,
निंदा करने योग्य करम है।
धर्मध्वजा लेकर जो फिरते,
लूट मचाना बना धरम है।
क़ुदरत का जब डंडा पड़ता ,
तब होता इंसान नरम है।
नियम और क़ानून न माने,
कहलाता वह मूढ़ परम है।
'शुभम'रोग को खेल समझता,
हैवानी हो गई चरम है।
💐 शुभमस्तु !
28.03.2020 ◆6.15 अपराह्न।
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