शनिवार, 28 मार्च 2020

ग़ज़ल


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
अफ़वाहों का बाज़ार गरम है।
हुआ आदमी  बिना  शरम  है।

सबको  लाले  पड़े  जान  के ,
फैलाते  कुछ  यहाँ  भरम  हैं।

राजनीति   लाशों   पर करते,
निंदा  करने   योग्य  करम है।

धर्मध्वजा   लेकर  जो फिरते,
लूट   मचाना   बना   धरम है।

क़ुदरत का जब डंडा  पड़ता ,
तब  होता    इंसान नरम  है।

नियम  और   क़ानून  न माने,
कहलाता   वह मूढ़  परम  है।

'शुभम'रोग को खेल समझता,
हैवानी  हो   गई    चरम    है।

💐 शुभमस्तु !

28.03.2020 ◆6.15 अपराह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...