रविवार, 1 मार्च 2020

पत्थर की आवाज [ दोहे ]


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 ✍ शब्दकार ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पहले    तो    कश्मीर    में ,
रहते              पत्थरबाज।
अब    है    सारे    देश   में ,
पत्थर     की  आवाज़।।1।।

कब  पत्थर   बरसें    कहाँ,
कैसे       हो       अनुमान?
चलता  -  फिरता  आदमी,
बन      जाए   हैवान ??2।।

प्रेम    मरा     ममता    मरी,
हया   न    हिय    में   शेष।
नमकहरामी     में      लगे ,
लोग  बदल  कर  वेष।।3।।

पहले  ही   था   मिट  चुका,
नेता        पर         विश्वास।
देशद्रोह  जो    कर      रहा ,
उससे    कैसी    आस??4।।

उतर   मुखौटे    सब      गए,
फ़िर   भी    चलें     कुचाल ।
बिना   फनों    के      दोमुँहे ,
रँगी     हुई    है    खाल।।5।।

शांतिदूत      बन        सूँघते,
हमराही         की      काँख।
अवसर  तक - तक   झोंकते,
मिर्चें   उसकी     आँख।।6।।

आगजनी   घर    की    करें ,
छत    पर     लगा    गुलेल।
हथगोले,     बम      फेंकते ,
लगा  अमन  का  तेल।।7।।

इशरत  ,  ताहिर    की  बढ़ी,
निशि -  दिन         पैदावार।
आग लगा   बिल   में  छिपें,
भारत     के       गद्दार।।8।।

समाधान        होता     नहीं , 
हिंसा    से    पशु        मूढ़  !
पहले     धारा   को    समझ ,
भेजा      तेरा        कूढ़।।9।।

अन्न ,   दूध ,   जल   देश का ,
खा -   पी     करता     ध्वंश।
जीता -  मरता    तू      यहाँ,
हे   राक्षस ! के    अंश।।10।।

छिपे    विभीषण    देश   में ,
'शुभम '  न   करते     काज।
गालियाँ ,  सड़कें       रौंदते,
देशी       पत्थरबाज।।11।।

💐 शुभमस्तु !

01.03.2020 ◆6.40 अप.

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