◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
पहले तो कश्मीर में ,
रहते पत्थरबाज।
अब है सारे देश में ,
पत्थर की आवाज़।।1।।
कब पत्थर बरसें कहाँ,
कैसे हो अनुमान?
चलता - फिरता आदमी,
बन जाए हैवान ??2।।
प्रेम मरा ममता मरी,
हया न हिय में शेष।
नमकहरामी में लगे ,
लोग बदल कर वेष।।3।।
पहले ही था मिट चुका,
नेता पर विश्वास।
देशद्रोह जो कर रहा ,
उससे कैसी आस??4।।
उतर मुखौटे सब गए,
फ़िर भी चलें कुचाल ।
बिना फनों के दोमुँहे ,
रँगी हुई है खाल।।5।।
शांतिदूत बन सूँघते,
हमराही की काँख।
अवसर तक - तक झोंकते,
मिर्चें उसकी आँख।।6।।
आगजनी घर की करें ,
छत पर लगा गुलेल।
हथगोले, बम फेंकते ,
लगा अमन का तेल।।7।।
इशरत , ताहिर की बढ़ी,
निशि - दिन पैदावार।
आग लगा बिल में छिपें,
भारत के गद्दार।।8।।
समाधान होता नहीं ,
हिंसा से पशु मूढ़ !
पहले धारा को समझ ,
भेजा तेरा कूढ़।।9।।
अन्न , दूध , जल देश का ,
खा - पी करता ध्वंश।
जीता - मरता तू यहाँ,
हे राक्षस ! के अंश।।10।।
छिपे विभीषण देश में ,
'शुभम ' न करते काज।
गालियाँ , सड़कें रौंदते,
देशी पत्थरबाज।।11।।
💐 शुभमस्तु !
01.03.2020 ◆6.40 अप.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें