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✍ शब्दकार©
🔰 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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सजन मेरे आए फागुन में।
दरस दिखलाए फागुन में।।
लेटी थी मैं ले खटपाटी,
ढूंढत मोहि आए फागुन में।
कोरी - कोरी मेरी चुनरी,
पिया रँग लाए फागुन में।
अँखियाँ तरस रही थीं मेरी,
पलँग ढिंग आए फागुन में।
बड़े - बड़े पकवान बनाए,
सैंया आ खाए फागुन में।
गा गाकर के गीत लिखे थे,
प्रीतम को सुनाए फागुन में।
सास न बात करन दे उनसों,
बलम जब आए फागुन में।
संग - सहेली होली खेलें,
हम ही पछताए फागुन में।
देवर से मैं बात न करती,
'शुभम' बहकाए फागुन में।
💐 शुभमस्तु !
06.03.202011.00अप.
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