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✍ शब्दकार©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपना कचरा उसके द्वार।
कहलाता परिवेश सुधार।।
मेरा आँगन मात्र स्वच्छ हो,
सबसे बड़ा देश - उद्धार।
आता है ऋतुओं का राजा,
कर ते विटप वेश - पतझार।
समझदार कितने नर- नारी,
नाले में दें क्लेश - उतार।
दूर प्रकृति से जाता मानव,
बैनर में संदेश - प्रसार।
पॉलीथिन कर रहे इकट्ठी,
नाली दिए केश सब झार।
कोरोना ! कोरोना!! करता,
करता नहीं देश - उपकार।।
देश बुद्ध का बुद्धू जनता,
हुआ ज्ञान परदेस प्रसार।
बे-चारों को मूढ़ न कहना ,
'शुभम ' नहीं ये मेष - प्रकार।
💐 शुभमस्तु !
08.03.2020 ◆2.50 अप.
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