रविवार, 8 मार्च 2020

ग़ज़ल


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✍ शब्दकार©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपना      कचरा उसके  द्वार।
कहलाता     परिवेश   सुधार।।

मेरा  आँगन  मात्र स्वच्छ हो,
सबसे       बड़ा  देश -   उद्धार।

आता     है  ऋतुओं  का राजा,
कर ते  विटप वेश - पतझार।

समझदार     कितने  नर- नारी,
नाले    में   दें  क्लेश   - उतार।

दूर    प्रकृति   से  जाता  मानव,
 बैनर       में     संदेश -  प्रसार।

पॉलीथिन        कर  रहे   इकट्ठी,
नाली    दिए    केश सब   झार।

कोरोना !      कोरोना!!    करता,
करता      नहीं  देश - उपकार।।

देश       बुद्ध   का   बुद्धू  जनता,
हुआ       ज्ञान   परदेस  प्रसार।

बे-चारों    को    मूढ़   न कहना ,
'शुभम '   नहीं   ये मेष -  प्रकार।

💐 शुभमस्तु !

08.03.2020 ◆2.50 अप.

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