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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'🌾
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36
भाँग भरी गुझिया लिए, साली आई एक।
हाथ जोरि भागे विनय, भाव न जाकौ नेक।।
37
कुंडलिया के पटु गुरू, हैं हरिओम महान।
साली जी के संग में, अटकी उनकी जान।।
38
बैठि परिंदा डाल पै, खुशी मनावें रोज।
साली चढ़े न पेड़ पै,करन हमारी खोज।
39
धीरे -धीरे जा रहे , धिरही अपने गाम।
साली आई दे गई ,भरौ कटोरा जाम।।
40
कल्पनेश की कल्पना ,साली जी के पास।
रूप देखि उनको कहें, कविता भरी सुवास।।
41
गई नम्रता खेलने, होरी बहना संग।
जीजा जी मग में मिले, लाल बिखेरौ रंग।।
42
उदय चले ससुराल कूँ, खेलन होरी रंग।
भाँग भरी गुझिया मिली,साली बड़ी हुरंग।।
43
पवन कहें अविनाश जी,चलौ दूर एकांत।
ढूंढ़ न पावें सालियाँ, करते हैं उद्भ्रांत।।
44
कैसें होरी छोड़ि दूँ , मेरौ नाम बसंत।
परि डर लागै रंग ते,मैं हूँ पूरौ संत।।
45
साली के आगे नहीं, चलता पौरुष एक।
होति कटखनी सलियाँ,हरतीं पूर्ण विवेक।
46
जयप्रकाश जाने लगे,जब अपनी ससुराल।
पत्नीजी कहने लगीं, साली है विकराल।।
47
उतरि शैल से शैलजा, पहुँची जीजी धाम।
पिचकारी ले हाथ में, ले जीजा कौ नाम।।
48
अमित करें सिंगार जब,साली बैठी आय।
हरौ रंगु मुख पोततीं, दे लंगूर बनाय।।
49
शुक्ला जी हरिदत्त ने, लियौ मुखौटा धार।
साली पहचानें नहीं, परै न रंगनु मार।।
50
साली जी के पाएँ छू,कहते दौलतराव।
दूरि रहौ दस फीट ही,हमें न होरी चाव।।
51
ऊपर ते नीचे तलक , आगे पीछे सत्य।
परि साली जी बोलतो, कविता सदा असत्य।
52
कासगंज की वासिनी ,मैं हूँ लताप्रमेश।
इतनों रँग बरसाउंगी, छोड़ूँ जरा न शेष।।
53
ऊपर ते नीचे उतरि,आऔ सागर यार।
कहा पहाड़न में धरौ, होरी कौ संसार।।
54
अर्णव प्रण करके चले, हमें न भावै रंग।
घुसि कंबल में जाऊँगो, करें सालियाँ तंग।।
55
ना बोलौ सालीअधिक,हम हैं जी खामोश।
जौ हम ही बोलन लगे, तुम कूँ आवे रोष।।
56
राजिन्दर जी का करें,पहन चले सलवार।
हँसीं सालियाँ देखिकें , कैसें दें रँग डार।।
57
विक्रम पूरौ फेल है, जा होरी में यार।
डारि दिये हथियार सब,साली बड़ी ख़िलार।।
58
पत्नी के सँग जा रहे, सासूधाम महेश।
साली जी ने रँग दिए, उनके गोरे केश।।
59
लै गुलाल प्रमिला फिरें,जीजाजी की खोज।
जीजा बंद हमाम में, ढूँढो चाहे रोज।।
60
देतौ रँगी बधाइयां, शुभम तूलिका मंच।
करौ समीक्षा रंग की ,मिलि कें सिगरे पंच।।
💐 शुभमस्तु !
07.03.2020◆6.00 पूर्वाह्न
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