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✍ शब्दकार ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दिनों का फेर है,
महा अंधेर है,
बैठिए घर में
साधकर चुप्पी,
न बजाइए ज़्यादा
निज जीभ की कुप्पी।
होगा पुनः
ये आसमां नीला,
चहचहायेंगे पखेरू,
उड़ेंगे पुनः
पहले की तरह,
जब न रहे
वे दिन,
तो रहेंगे क्यों
आज के दुर्दिन,
जिनको जी रहे हैं
हम सभी गिन -गिन,
न करो ज़्यादा
मक्खियों की तरह
भिन् -भिन् ,
मधुमक्खियों के
छत्ते पर ,
अपने घरों में ही
भिनभिनाते रहो,
अपने -अपने
घोंसलों में ,
छत्तों में
(छतों में नहीं)
मस्त
खाते -पीते रहो।
वसुधैव कुटुम्बकम की
सद्भावना
अनुगूँज की तरह,
गुंजायमान है,
कान लगाकर
उसको सुनो ,
देह की देह से
दूरियाँ
कुछ और ही बढ़ा लो
न करने दो
परस न करो ।
नहीं है वक्त
दिखाने का
तुम्हारी हेकड़ी,
पूजा- पाठ ,भजन,
अपने ही
घरों में करो,
नहीं काम आएंगे,
मज़हबी उसूल,
कर रहे हो,
आत्महत्या
तो करो।
एक ही राह
आए हो ,
जाओगे भी
उसी राह,
फिर बनावटी
उसूलों की आग,
जलाते क्यों हो ?
अपनी अहमियत को
सस्ते में
मिटाते क्यों हो?
आदमी हो अगर
आदमियत से परे
जाते क्यों हो ?
चलता है कोरोना
चलने वालों के साथ ,
दिखाता है तुम्हें
अपने हजारों हाथ!
वह तो छूत यात्री है,
चला जाएगा,
तुम तो रुक जाओ
अपने घर में,
नहीं रुकेगा
वह तुम्हारे पास,
आया है
चलने वालों की
रोकने को साँस।
स्वच्छता में
बसते हैं सदा भगवान,
स्वच्छता ही देगी
उसको मरण का दान,
खाई है जिन्होंने
जिंदा या मुर्दा जान,
जिनका उदर है
गहरा कब्रिस्तान,
उन्हीं का जाया
हुआ है कोरोना,
प्राण रक्षा हित
'शुभम' अपने हाथ
पुनः -पुनः धोना,
प्रमादी न होना।
💐 शुभमस्तु !
26.03.2020 ◆3.30 अपराह्न।
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