✍ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
नाक तले डाका पड़े,
थाने के यह बात।
सोचनीय गम्भीर भी ,
असहनीय संघात।।1।।
ओढ़ दुशाला शांति का ,
आते नेता - नाग।
राग अलापें बेसुरा ,
सुलगाते हैं आग ।।2।।
नाग चुनौती दे रहे ,
जन भौंचक भयभीत।
फन कुचलें इनके प्रथम,
यही पुरानी रीत ।।3।।
घर के भेदी ढा रहे,
लंका , मार गुलेल।
पूर्व नियोजित छद्म को ,
देश रहा है झेल।।4।।
फन में थैली ज़हर की,
विकट विषैले दाँत।
शांति नहीं कुचले बिना ,
रखना क्यों मति भ्रांत??5।।
आस्तीन के साँप हैं,
ओढ़ शांति की खाल।
नेता ही इस देश के,
देश , धर्म के काल ।।6।।
चुन -चुन कर विष -दंत का,
खंडन ही अब धर्म।
यही राष्ट्रसेवा 'शुभम',
पावन है यह कर्म।।7।।
जाति , धर्म के नाम पर ,
द्रोह , खून का खेल।
बहुत दिनों चलना नहीं ,
पड़नी नाक नकेल।।8।।
दिल्ली , केरल , असम हो,
या हो फिर बंगाल।
सदा रहेगा देश ये ,
हिंदुस्तान बहाल।।9।।
दूब कभी मरती नहीं ,
कुचली , मसली जाय।
सदा हरी पाताल तक ,
मौन शांत लहराय।।10।।
जान गए औकात हम ,
समझे गरल - अनीति।
दूध पिया उगला जहर ,
यही नीच की रीति??11।।
आँख हमारी खुल गईं,
जाग गया अब शेर।
साँप , छुछून्दर , सुअर का,
करना होगा ढेर।।12।।
अपना भाई मानकर ,
दिया प्यार सहकार।
आस्तीन का साँप वह,
रहा हमें ललकार??13।।
शांति सहज सौहार्द्र से ,
रहना अपनी नीति।
हिंसा , गोली , आग की ,
असहनीय दुर भीति।।14।।
कंटक से कंटक हटे,
संकट होता दूर।
'शुभम' नीति होगी यही ,
पत्थर चकनाचूर ।।15।।
💐 शुभमस्तु !
02.03.2020 ◆3.45पूर्वाह्न।
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