मंगलवार, 3 मार्च 2020

कंटक से कंटक हटे [ दोहा ]



✍ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

नाक       तले     डाका    पड़े,
थाने     के      यह       बात।
सोचनीय        गम्भीर    भी ,
असहनीय       संघात।।1।।

ओढ़     दुशाला  शांति  का ,
आते            नेता  -  नाग।
राग       अलापें       बेसुरा ,
सुलगाते     हैं    आग ।।2।।

नाग      चुनौती     दे     रहे ,
जन    भौंचक     भयभीत।
फन   कुचलें   इनके   प्रथम,
यही      पुरानी     रीत ।।3।।

घर     के     भेदी    ढा    रहे,
लंका ,      मार        गुलेल।
पूर्व      नियोजित   छद्म को ,
देश      रहा     है  झेल।।4।।

फन में    थैली    ज़हर  की,
विकट      विषैले       दाँत।
शांति   नहीं    कुचले  बिना ,
रखना क्यों मति  भ्रांत??5।।

आस्तीन      के    साँप    हैं,
ओढ़     शांति     की   खाल।
नेता     ही     इस    देश   के,
देश , धर्म    के  काल ।।6।।

चुन -चुन कर विष -दंत का,
खंडन        ही     अब   धर्म।
यही     राष्ट्रसेवा     'शुभम',
पावन    है    यह   कर्म।।7।।

जाति , धर्म   के   नाम  पर ,
द्रोह ,      खून     का    खेल।
बहुत   दिनों   चलना   नहीं ,
पड़नी      नाक   नकेल।।8।।

दिल्ली , केरल , असम हो,
या    हो    फिर     बंगाल।
सदा    रहेगा     देश    ये ,
हिंदुस्तान      बहाल।।9।।

दूब    कभी    मरती  नहीं ,
कुचली   ,  मसली     जाय।
सदा    हरी   पाताल   तक ,
मौन   शांत    लहराय।।10।।

जान     गए    औकात  हम ,
समझे        गरल - अनीति।
दूध   पिया    उगला   जहर ,
यही नीच  की   रीति??11।।

आँख    हमारी    खुल  गईं,
जाग      गया    अब      शेर।
साँप ,  छुछून्दर , सुअर  का,
करना      होगा    ढेर।।12।।

अपना      भाई      मानकर ,
दिया     प्यार        सहकार।
आस्तीन   का    साँप    वह,
रहा   हमें   ललकार??13।।

शांति     सहज     सौहार्द्र  से ,
रहना          अपनी     नीति।
हिंसा ,     गोली ,    आग की ,
असहनीय      दुर  भीति।।14।।

कंटक        से     कंटक  हटे,
संकट         होता         दूर।
'शुभम'   नीति   होगी  यही ,
पत्थर      चकनाचूर ।।15।।

💐 शुभमस्तु ! 
02.03.2020 ◆3.45पूर्वाह्न।

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