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✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अच्छी होती सदा सफ़ाई।
देते हम सब आज दुहाई।।
हाथ, पैर ,तन,मन धो डालें।
घर बाहर भी देखें - भालें।।
बात बड़ों ने ये समझाई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
सुबह उठें कर - दर्शन कर लें।
लक्ष्मी , वाणी मातु सुमिर लें।।
कर के मूल गोविंद सहाई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
पीवें तुरत गुनगुना पानी।
स्वच्छ उदर की हमने ठानी।।
फिर मंजन दातुन रगड़ाई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
अब नहान की आती बारी।
खिलती तन मन की हर क्यारी।।
धुले वस्त्र फ़िर पहनें भाई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
मत डालें नाली में कचरा।
बढ़ें अन्यथा माखी मछरा।।
रोग निरोधक कर छिड़काई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
घर - बाहर हर रोज बुहारें।
गमलों को दें सलिल फुहारें।।
नमक मिला पोंछा सुखदाई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
नख , बालों को भी कटवाएँ।
बड़े अधिक जब वे हो जाएँ।।
जूँये न कर लें रक्त चुसाई।
अच्छी होती सदा सफ़ाई।।
💐 शुभमस्तु !
20.03.2020 ◆5.00 अप.
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