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✍ शब्दकार©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जिंदगी अनसुना गीत है।
गीत गाने की जुदा रीत है।।
कोई गाता है हँसकर इसे।
कोई ढाता है कटु कर जिसे।।
तेरी मेरी परम प्रीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
कोई ढोता है ये जिंदगी।
कोई खोता है कर दिल्लगी।।
कोई दुश्मन कोई मीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
आना - जाना लगा है यहाँ।
खोना - पाना सगा है जहाँ।।
कोई हारा कहीं जीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
एक करता नहीं काम को।
चाहता है बड़े नाम को।।
ये इंसां बड़ा ढीठ है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
कोई हिन्दू , मुसलमाँ यहाँ।
भेदभावों का कैसा जहाँ?
बज रही ईंट से ईंट है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
अंधे - बहरे ये इंसां सभी।
देख पाते न सुनते कभी।।
गूँगे - बहरों का संगीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
हिन्दू - हिन्दू में छोटा बड़ा।
सबका झंडा अलग ही गड़ा।।
केसरी लाल असित पीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
एक ही द्वार आया यहाँ।
एक ही राह जाए वहाँ।।
मौत से तू हुआ भीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
कर्म ही साथ आता यहाँ।
कर्म ही साथ जाता वहाँ।।
कर्म कर ले वही मीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
कह रहा है तू धी वान है।
चार दिन का तू मेहमान है।।
'शुभम' उर में नहीं तीत है।
जिंदगी अनसुना गीत है।।
💐 शुभमस्तु !
11.03.2020◆8.00अप.
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