✍ शब्दकार©
🎊 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम'
बहू चोलिका मंच की,आई लै- लै रंग।
देवर-जेठन कूँ करन, रँग बरसा के तंग।।
मीना ठाड़ी हँसि रहीं,दै दाँतनु पट छोर।
हो हो होरी होवती, भयौ खंडवा शोर।।
ममता , श्यामा, साधना,रेखा, उषा ,सरोज।
बेला चिमटा लै खड़ीं, हुरिहा रिनु की फ़ौज।
प्रेमलता चढ़ि पेड़ पै, करतीं रँग बौछार।
अंजू ,मंजू , भारती, की पिचकारी धार।।
रचना ड्यौढ़ी पै खड़ीं,हाथनु भरौ गुलाल।
नीता नें तौ रंगि दए,नीलम के हू गाल।।
सरला ढोल बजावतीं, ढपली पै मधु ताल।
होरी खेलन जा रहीं, पुष्पा हू ससुराल।।
नाचि - नाचि आँगन भरे, रे नू मीना भट्ट।
श्वेताम्बरी सराहतीं, प्रमिला हाथनु लट्ठ।।
चलीं विनीता नाचिबे,पांयनु घुँघरू बाँध।
कहे योगिता नाचि लै,कल्ले पूरी साध।।
सेफ नहीं 'शेफालिका',लंहँगा चूनर ओढ़।
लाठिया लै जाने लगीं,होरी कौ रँगु छोड़।।
बजा रहीं करताल दो,'राज लक्ष्मी' नेक।
'महालक्ष्मी' से कहें, रंगु लगाऔ नेंक।।
होरी में मधु गुप्त चों, कुसुम कहें शरमाइ।
सूखी -सूखी मति फिरै,गालनु लाल कराइ।।
देवर तेवर देखि कें, भाजीं भाभी फेर।
बंद सिटकनी है गई,सभी हमामनु केर।।
साजनजी जौ देखि लें,भौतु परेगी डाँट।
गाल गुलाबी होंयगे,बिगरि जायगौ ठाट।।
बहू चोलिकामंच की,गुझिया 'शुभम'खिलाउ।
बिना भाँग कौ है नशा, तुरत रसोई जाउ।।
💐 शुभमस्तु !
05.03.2020◆2.45अप.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें