शनिवार, 14 मार्च 2020

कोरोना का रोना है! [ गीत ]


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✍ शब्दकार!
👑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अब    कोरोना     का   रोना  है,
बद   नफरत  का     ही  दंगा है।
आदमी        आदमी  की खातिर,
हो   गया    आज    बदरंगा है।।

आदमी       बन   गया  शंहशाह,
कुत्सित है  उसकी  कुटिल चाह।
आगे   बढ़ने     की     बंद   राह,
चाहता     सभी    से   वाह वाह।।
खाली      इंसां का   हृदय - कोष,
वह   बना    हुआ   भिखमंगा है।
अब      कोरोना     का    रोना  है ,
  बद     नफरत   का   ही  दंगा है।।

कहता  जिसको अपना विकास,
बोता   उसमें    ही   महा  नाश।।
निर्मित   चौमहले    सजा  ताश,
  आता  नर को  सुख  भी  न रास।।
पर्वत,  सागर ,    धरती    मैली,
मैली   यमुना     सरि    गंगा  है।
अब     कोरोना    का    रोना  है,
बद   नफरत   का  ही    दंगा है।।

वसनों    से    कोई    बँधा  हुआ,
 टैटू से      कोई         गुंधा   हुआ।
 जिस्मों   ने  नहीं  है   वसन छुआ,
मैं  सभ्य  हुआ ! मैं  सभ्य हुआ!!
किस     ओर  जा   रहा   है मानव,
इन    वसनों     में    भी   नंगा है।
अब      कोरोना     का   रोना है ,
बद     नफरत    का  ही   दंगा है।।

अफ़वाहों       का      बाजार गरम,
सूखा   पानी      मर    गई  शरम।
उपदेशों   में     बच    गया   धरम,
दूषित    हैं    सारे     मनुज करम।।
दम    तोड़    रहा     विश्वास  यहाँ,
मन     से   न    आदमी    चंगा है।
अब      कोरोना       का   रोना  है ,
बद    नफरत     का   ही    दंगा है।।

 काजर         की     कोठी   में रहना ,
बचते -    बचते      काजल लगना।
सब    दोष,   दाग    रह कर सहना,
  सरिता  -   प्रवाह    के    सँग बहना।।
 शुभ   अशुभ  'शुभम' कहते किसको,
किस       किससे   लें   अब  पंगा है।
अब         कोरोना    का      रोना   है ,
बद     नफरत   का   ही     दंगा है।।

💐 शुभमस्तु!

13.03.2020★3.00अप.

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