गुरुवार, 13 अगस्त 2020

गाय की पूँछ [ दोहा गज़ल ]

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✍ शब्दकार©

🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बँधी गाय की पूँछ से,सकल सियासत आज।

वैतरणी  को पार कर, पहना देती   ताज।।


गौमाता  गौ  माँ जपा,पय पी देता   छोड़,

फ़सल चराये और की, करे मंच चढ़ नाज।।


गायों   को   चारा   नहीं,  गौ शालाएँ   सून,

सड़कों पर भटकी फिरें,भक्त करें सुखसाज।


अभिनय  करते भक्तजन, गो-सेवा का रोज़,

ख़बर छपें अख़बार में,छपने की है खाज।


दुर्घटनाएँ   हो रहीं,सड़कों पर गौ - मौत,

घड़ियाली आँसू बहें, राज नीति का राज़।


कटतीं   गायें  आड़ में , बाहर धर्म  प्रचार,

मानव  दानव  हो गया,  गिद्ध झपट्टेबाज।


गोरस पर लिख पोथियाँ,खाते वे  गोमांस,

कलयुग है द्वापर नहीं,क्यों न गिरेगी गाज।


धेनु  चरैया   कृष्ण  की, वंशी करे न  गूँज,

पालक घालक हो गए,छीनी छाजन छाज।


लिपट  गाय  के सींग  से,नेता कुर्सी  प्राप्त,

'शुभम'न छोड़ें गाय को,चला न जाए ताज।


💐 शुभमस्तु !


13.08.2020◆11.40पूर्वाह्न।

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