शनिवार, 29 अगस्त 2020

ग़ज़ल

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✍ शब्दकार©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जब से भए कुतवाल जी सैंयाँ।

महल  बन  गई  सड़ी मढ़ैया।।


बीसों    अँगुली   घी  में उनकी,

घी  में    गाड़ी    मुड़ी  कढैया।


कौन   करेगा    हिम्मत  उनसे,

वे मुहाल   की   बड़ी लड़इया।


जो  वे   चाहे    नियम  वही है,

अखबारों   में   बढ़ी   बढ़इया।


 भूत      भागते    हैं   डंडे   से,

पार      उतारे    तड़ी    करैया।


वर्दी    की    ताकत   पहचानो,

कहती    है    मुड़चढ़ी लुगैया।


उतरेगा  जिस दिन ये छिलका,

'शुभम' न आए  मढ़ी   बचैया।।


💐  शभमस्तु !


29.08.2020 ◆5.30अप.

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