◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
© शब्दकार©
🧆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
देखो ये मोटू हलवाई।
रोज बनाता खूब मिठाई।।
लड्डू पेड़ा खाते वरती।
बने जलेबी और इमरती।।
घेवर , रबड़ी , बालूशाही।
देखो ये मोटू हलवाई।।
गरम समोसा नरम पकौड़ी।
दाल मूँग की प्याज मगौड़ी।।
खाते पापा मम्मी ताई।
देखो ये मोटू हलवाई।।
बची - खुची हलवाई खाता।
पेट लटक बाहर को आता।।
करता दिनभर खूब कमाई।
देखो ये मोटू हलवाई।।
मीठा थोड़ा मुझे न भाता।
नमक मिर्च का ही मैं खाता।।
काजू की बर्फी बस भाई।
देखो ये मोटू हलवाई।।
बहन-नेह का शुभ दिन आया
राखी का ये पर्व सुहाया।।
घेवर की छोड़ूँ न मिठाई।
देखो ये मोटू हलवाई।।
💐 शुभमस्तु !
03.08.2020 ◆9.25पूर्वाह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें