◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
रुक्मिणि के घर राधा आई।
ढूँढ़ रही हैं कृष्ण कन्हाई।।
राधा सहज अधर मुस्काई।
तब थोड़ी रूक्मिणि शरमाईं।
'कहाँ गए वे मुरली वाले।
श्याम हमारे बड़े - निराले।।'
'काम बताओ राधे रानी।
तुम हो चंचल बड़ी सयानी।।'
'जीजी हमने डाला झूला।
कहाँ सलोना नटवर भूला??
'आई राखी सावन मासा।
झूलें सँग अपनी अभिलाषा।।
'देखो झर - झर बरसा पानी।
पहनो तुम भी चुनरी धानी।।
'मोर बाग में बोल रहे हैं।
नाच- नाच रस घोल रहे हैं।।
'गोपी ग्वाले सब हैं आए।
झूल- झूल कर वे इतराए।।
'बिना श्याम हम कैसे झूलें।
बरसाने की राहें भूले।।
'चलो बाग में झूला झूलें।
पींग बढ़ाकर अम्बर छूलें।।'
'श्याम तुम्हारे कौन बताओ।
मत कान्हा कोऔर सताओ।।
'मेरा भोला किशन कन्हाई।
उसको ठगने को तुम आईं??
'बरसाने को सीधी जाना।
संभव नहीं मुझे ठग पाना।।
'महलों में हम झूला डाला।
वहीं झूलता श्याम निराला।।
'चंदन पाटी रेशम डोरी।
जहाँ झूलतीं हम सब गोरी।।
'संग तुम्हारे क्यों वह झूले?
अपनी पटरानी को भूले??'
मधुर डाँट राधा ने पी ली।
मुस्काई कर आँखें गीली।।
'जीजी मैं ठगिनी लगती हूँ?
क्या मैं ही उनको ठगती हूँ??
'मोहन है वह सबका प्यारा।
जादू हम पर उसने डारा।।
'मैं बेबस निर्मल मन मेरा।
नहीं मात्र जीजी वह तेरा।।
'उसे चाहता है ब्रज सारा।
कान्हा ने तो सब जग तारा।।
'मारे असुर कंस से घाती।
श्याम हमारा एक सँघाती।।
'मत समझो रानी जी ऐसा।
भाव न लाओ ऐसा वैसा।।
'कहाँ छिपाया है बतलाओ।
तुम झूलों औ' हमें झुलाओ।।
'आओ जीजी झूलें झूला।
'शुभम' तुम्हारा ही वह दूला।।
'मत हो इतनी आग बबूला।
बात जरा - सी झूलें झूला।।'
तभी श्याम बाहर से आए।
राधा रुक्मिणि नयन झुकाए।
ज्यों बिजली बिच खिले जुन्हैया।
राधा रुक्मिणि संग कन्हैया।।
💐 शुभमस्तु !
01.08.2020◆3.00 अप.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें