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✍ शब्दकार ©
🚩 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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राम की धरा अयोध्या धाम।
नमन हम करते कोटि प्रनाम।
अवतरित त्रेता युग श्रीराम।
बनाया माँ को पूर्ण सकाम।।
गूँजती दस दिशि वाणी राम।
अहर्निशि क्षणक्षण प्रातःशाम
रमे कण - कण में हैं वे राम।
राम की धरा अयोध्या धाम।।
राम के अनुज लखन से वीर।
भरत शत्रुघ्न तीन रणधीर।।
सुमित्रा कौशल्या - सी मात।
तीसरी कैकेयी अवदात।।
खिलउठा दशरथजी का नाम
राम की धरा अयोध्या धाम।
पढ़ीं विद्याएँ चारों वेद।
शस्त्र- शास्त्रों के सारे भेद।।
सदा गुरुसेवा में तल्लीन।
हुए गुरुकुल में पूर्ण प्रवीन।।
सहन कर दोपहरी की घाम।
राम की धराअयोध्या धाम।।
युवा वय सीता संग विवाह।
जानकीस्वयंवर प्रणय प्रवाह।
जनकने किया सहज स्वीकार
योग्य जामाता का आभार।।
नए जीवन में हुए सकाम।
राम की धरा अयोध्या धाम।।
यहाँ जो आता है जिस हेतु।
स्वतः बन जाते हैं सब सेतु।।
राम का हुआदुःखद वनवास।
नहीं थी जिसकी कोई आस।।
गए वन सीता के सँग राम।
राम की धरा अयोध्या धाम।।
इधर रावण कृत सीताहरण।
उधर साकेत पिता का मरण।
किधर जाते दोनों के चरण।
समयवाणी का करके वरण।।
असुर का अंत किया संग्राम।
राम की धरा अयोध्या धाम।।
राम लौटे सीता के साथ।
संग हनुमंत लखन के नाथ।।
गूँजता पुष्पक तीव्र विमान।
राम की मर्यादा का गान।।
अयोध्या नगरी सारे ग्राम।
राम की धरा अयोध्या धाम।।
💐 शुभमस्तु !
03.08.2020 ◆6.00 अपराह्न।
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