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✍ शब्दकार©
🌳🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
धरती के शृंगार हैं, पौधे इस संसार।
जन जीवन अस्तित्व को,देते हैं सत सार।
देते हैं सत सार, बनाए हैं वन उपवन।
पौधे, बेलें, फूल,स्वर्ग में भी वन नंदन।।
'शुभं'प्राण बिन वायु,सृष्टि मानव की मरती।
तरु - पौधों से पूर्ण ,रहे मेरी ये धरती।।
-2-
धरती पर पौधे खड़े,मृदा जकड़ती मूल।
पोषकता बहती नहीं,नहीं बिखरती धूल।।
नहीं बिखरती धूल,धरा की रक्षा होती।
सोना उगलें खेत,चना, गेहूँ के मोती।।
'शुभम 'रोपिए पौध,ज्योति नयनों में भरती।
हरियाली भरपूर, करें मानव ये धरती।।
-3-
धरती पर पौधे न हों,जीवन का हो नाश।
बिना अन्न,फल,दूध के,मानव की हो लाश।।
मानव की हो लाश,नहीं ऑक्सीजन होगी।
पशु- पक्षी से हीन, बनेंगे सारे रोगी।।
'शुभम' न काटें पेड़,न छोड़ें खेती परती।
हरा-भरा हो देश, शस्य से श्यामल धरती।।
-4-
धरती माता के लिए, मानव है शृंगार।
प्राणवायु का नाश कर,करता कुलिश प्रहार।
करता कुलिश प्रहार,पेड़ नित काट रहा है।
पावन पादप हेत,जगत - सम्राट कहा है।।
'शुभम'सृजन का द्वार,खोलती सुंदर करती।
भारत का गलहार, हरी पेड़ों से धरती।।
-5-
धरती के रक्षक बनें,भक्षक बनें न मीत।
पादप से ही प्राण हैं, चलें न उलटी रीत।।
चलें न उलटी रीत,न दोहन जल का करना।
रोपें पौधे चार, अन्यथा पड़ना भरना।।
शुभं सुलभ जलवायु,जिंदगी इनसे सरती।
जन्मभूमि से त्राण,वही माँ पावन धरती।।
💐 शुभमस्तु !
25.08.2020◆7.30अपराह्न।
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