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✍ शब्दकार©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
मंदिर प्रभु श्रीराम का, बने अयोध्या धाम।
गूँजे भारतवर्ष में, राम राम जय राम ।।
राम राम जय राम, मनाएँ सब दीवाली।
होता घण्टा नाद, शंख ध्वनि महा निराली।।
'शुभम' राम का राज, घटाएँ बरसें घिर-घिर।
जन-जन हो खुशहाल,बने रघुवर का मंदिर।।
-2-
मंदिर सोने का नहीं,नहीं रजत का काम।
मन का दर खोले रखें,तभी मिलेंगे राम।।
तभी मिलेंगे राम, मनुज मर्यादा जानें।
अहंकार में चूर , नहीं अपनी ही तानें।।
शुभं नहीं पाषाण,खण्ड से बनते घिर घिर
उर में हों सद्भाव,भाव के होते मंदिर।।
-3-
मंदिर की महिमा यही,न हो जाति का बंध।
सब आएँ दर्शन करें, मति के रहें न अंध।।
मति के रहें न अंध, बने व्यापार न धंधा।
ठगियों का ठग जाल,लूट का अड्डा अंधा।।
'शुभम'न होते कैद,राम तालों में घिर -घिर।
कण -कण में है राम,नहीं पत्थर का मंदिर।।
-4-
मंदिर प्रभु श्रीराम का,जनजन का अधिकार।
राजनीति की गंदगी , भरती वहाँ विकार।।
भरती वहाँ विकार,नहीं जो कण भी देता।
करता लूट अपार, कनक से घर भर लेता।।
'शुभम'धर्म का हेत, सदा रहता है थिर -थिर।
अजर अमर हैं राम, बनाता मानव मंदिर।।
-5-
मंदिर के निर्माण का, श्रेय लूटते यार।
अपने-अपने शंख की, फूँक करें फुसकार।।
फूँक करें फुसकार, उठाए बैनर झंडे।
धरें गेरुआ वेश, ऐश करते मुस्टंडे।।
'शुभम'मौन पाषाण,नींव के भूतल गिर -गिर।
चढ़ा शिखर पर ढोंग,बताता अपना मंदिर।।
💐 शुभमस्तु !
04.08.2020◆5.45अपराह्न।
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