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✍ शब्दकार©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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राधा सुमिरन जाप से ,रहे न बाधा एक।
श्याम स्वयं आते वहाँ, साधें काज अनेक।।
राधा! राधा!! नित जपें,जय श्री राधेश्याम।
ब्रजरज लगा ललाट पर,बनते बिगड़े काम।।
जहाँ बसें राधा सखी, वहाँ विराजें श्याम।
राधा जी के चरण युग,तीरथ राज ललाम।।
बसो हमारी साँस में,श्रीराधे घनश्याम।
रमा रमापति आप ही,सुंदर सीताराम।।
रसना मम राधे जपो ,जपो श्याम का नाम।
चिंताएँ हरते सभी, बनते सारे काम।।
जिस रसना ने श्याम का,जपा न प्यारा नाम।
राधे जो जपता नहीं,मिले नहीं हरि धाम।।
एक प्राण दो देह हैं, श्री हरि राधेश्याम।
शिक्षा देते नेह की,निधिवन में ब्रजधाम।।
लीलाधारी श्याम की,लीला नित्य ललाम।
राधे बिना न हो सकें,सुमधुर सुंदर काम।।
राधे रानी उर बसो , बसो हमारे धाम।
नहीं भूलना साथ में, लाना कान्हा श्याम।।
भाग्यवान नर जीव है, जन्म लिया ब्रजधाम।
पुण्यधरा वह धन्य है ,विचरे राधे श्याम।।
राधे बिन आधे रहें, जब मेरे घन श्याम।
'शुभम'नहीं राधे बिना,जीवन वृथा अकाम।।
💐 शुभमस्तु !
30.08.2020◆9.45अपराह्न।
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