शनिवार, 1 अगस्त 2020

ग़ज़ल

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✍ शब्दकार©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आसमाँ सर को झुका आया जमीं पर।
देख शर्माए नयन ठंडी नमी पर।।

मुस्कराया चाँद रजनी मौन उतरी,
सुबह तक थी साथ थी थोड़ी कमी पर।

क्या बुरा हमने किया क्या कह दिया है,
नज़र टेढ़ी कर रहे हो तुम हमीं पर।

आँधियाँ कब तक चलेंगीं जिंदगी में,
उन्हें थमना था हमेशा को थमी पर।

चार दिन की चाँदनी का ही उजाला
बहुत है,मेरा नहीं वश जिंदगी पर ।

पहनकर कपड़े चमकते क्या चमकना,
है यकीं हमको हमारी सादगी पर।

कौन अपना कौन है जग में पराया,
'शुभम'को है आस अपनी वंदगी पर।

💐 शुभमस्तु !

01.08.2020◆5.00 अप.

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