गुरुवार, 20 अगस्त 2020

ये सभ्य लोग! [ गीत ]

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✍ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कपड़े   नहीं    माँगकर  पहने, 

नहीं      माँगकर    खाते  हैं।

वे  सम्मानित  भद्र  पुरुष  हैं,

सभ्य    लोग   कहलाते  हैं।।


उन्हें  भिखारी मत कहना जी,

नहीं    माँगते   भीख   कभी।

जनसेवी    वे   देशभक्त   भी,

उन्हें    पूजते   लोग    सभी।।

किंतु नहीं पढ़ सकते क्रयकर,

माँग    पुस्तकें      लाते    हैं।

कपड़े  नहीं   माँगकर  पहने,

नहीं    माँगकर    खाते    हैं।।


मंचों    पर   भाषण करते हैं,

ऊँची  -    ऊँची     बोली  में।

शिक्षा    देते   हैं   बच्चों  को,

भेंट    माँगते     झोली   में।।

पर कवियों से आस लगाते,

क्यों न  काव्य  बँटवाते  हैं?

कपड़े  नहीं  माँगकर पहने,

नहीं    माँगकर   खाते   हैं।।


अपनी   शिक्षा   बेच   रहे  वे,

बच्चों   का   पालन     करने।

सब्जी,    रोटी   नहीं   माँगते,

लगे   उदर    घर   का भरने।।

पुस्तक छपतीं  बिना राशि के,

समझ    यही    वे   पाते  हैं।

कपड़े  नहीं  माँगकर  पहने,

नहीं      माँगकर    खाते हैं।।


मोटर,  गाड़ी ,  एसी , बंगला,

सब   पैसे    से     आती  हैं।

पत्नी  की    साड़ी, सलवारें,

पैसे    से     बन   पाती  हैं।।

पर मन में है  आस  एक ही,

मुफ़्त   न   पुस्तक   पाते हैं।

कपड़े  नहीं  माँगकर  पहने,

नहीं   माँगकर    खाते   हैं।।


भीख   माँगनी    है तो  माँगो,

रोटी ,   चावल ,दाल    सभी।

दानवीर   तो     दे   ही  देंगे,

भरें   कटोरे    रिक्त     तभी।।

'शुभम'पुस्तकें क्रयकर पढ़ना,

समझ    नहीं    वे   पाते  हैं।

कपड़े  नहीं  माँगकर  पहने,

नहीं   माँगकर   खाते    हैं।।


💐 शुभमस्तु !


20.08.2020 ◆12.05 अप.

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