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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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प्रथम स्नेह माँ का मिला,बाद पिता का नेह।
गुरुजन परिजन के नयन,भरे नेह के मेह।।
शिष्यों को गुरुनेह का,है पूरा अधिकार।
सूखे पादप नेह बिन,जल ही मूलाधार।।
स्नेह दूध से जब मिला,कह लाया नवनीत।
करे पुष्टि मस्तिष्क की,हुई ज्ञान की जीत।।
जामन देकर दूध में,जमा दही अभिराम।
मंथन कर तब तक्र का,स्नेह मिला बहुकाम
पेरी सरसों नेह को,कोल्हू में दी डाल।
गाढ़े पीले स्नेह का,देखो 'शुभम'कमाल।।
सबके सिर मस्तिष्क में,भरा स्नेह धी मूल।
मज्जा से हर अस्थि में , बनें रक्त के फूल।।
पिल्ला भी हर श्वान का,जाने स्नेह दुलार।
दौड़ा आता पास में,यदि बोलो पुचकार।।
खाने से उत्तम सदा,स्नेह लगा पर-देह।
चापलूस चमचा कहे,दुनिया निस्संदेह।।
नेताजी की देह पर,लगा स्नेह नवनीत।
चमचम चमके चर्म भी,बन जाएंगे मीत।।
मर्दन करते स्नेह का,जब हो तन में रोग।
पीड़ाहारी नेह से, होते जन नीरोग।।
महिमा मानव नेह की,छाई जगत अपार।
शुभ सकार होता सदा,हरता विपुल विकार।
💐शुभमस्तु!
15.06.2020 10.30 पूर्वाह्न।
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