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✍ शब्दकार©
💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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देख नथुनिया नाक पर, भूल गए हम राह।
लहरें उर -सागर उठीं, निकली मुँह से आह।।
हथिनी- सी पग-चाल में, उलझे मेरे नैन,
चंचल चपला कौंधती ,जागी सोई चाह।
देहयष्टि -छवि देख कर,खोया मन का चैन,
वामांगी शुभ कामिनी, वाह! वाह!!बस वाह!
मुरझाते हैं फूल भी, छूने से भी डाल,
देख दृष्टि से तृप्त हैं , नहीं खोजते थाह।
अधरों से रस छलकता, कोमल लाल कपोल,
पयधर पीन अनंग के,ध्वजवाहक हमराह।।
सावन की लगती झड़ी,भीगे अंग उभार,
देख हमें भय लग रहा,चलें नहीं बदराह
बाहर पावस भीगता,तन के भीतर आग,
'शुभम'जलातीअंग को,पिघली-पिघली दाह।
💐 शुभमस्तु !
02.08.2020◆12.45अपराह्न।
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