सोमवार, 31 अगस्त 2020

धरती पर गुरु दिव्य हैं! [ कूण्डलिया ]

  

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                     -1-

सतगुरु हैं भगवान सम,पाएँ शुभ आशीष।

डाल -डाल पर कूदते,बने रहे नर - कीश।।

बने रहे नर -कीश, नहीं मानव बन   पाते।

उछल-कूद में लीन, धौंस देते खुखियाते।।

शुभं यौनि पहचान,नहीं कर इतनी खुरुखुरु।

साँचे  को  ही छान, उतारे सरिता  सतगुरु।।


                     -2-

धरती पर गुरु दिव्य हैं,कहाँ दिव्यता  शेष!

माटी को कंचन करें,मानव के शुभ  वेष।।

मानव  के  शुभ वेष, उन्हें पहचानें    ज्ञानी।

करने  को उद्धार ,हृदय में जिसने    ठानी।।

'शुभम'करें गुरु खोज,वृथा ही दुनिया मरती।

खा -पी मिलते  धूल, भार ही ढोती   धरती।।


                       -3-

अनगढ़ माटी मनुज की,गुरु ही सिरजनहार।

जिस  साँचे में ढाल दें,मिले वही   आकार।।

मिले वही आकार, न मटकी चिलम  बनाते।

गढ़ते  डंडा मार, दनुज मानव बन    जाते।।

'शुभं'ब्रह्म का रूप,सजाते सिख को बढ़चढ़।

देते दिव्य स्वरूप,मनुज की माटी अनगढ़।।


                        -4-

माटी को जीवन मिले,गुरु जब मिले महान।

ठोंक - पीट आकार दे, तपा अवा -  अज्ञान।

तपा  अवा अज्ञान, लाल ज्यों गागर   होती।

टन- टन बजती खूब, ज्ञान के दाने    बोती।।

'शुभम' नहीं  गुरु आम,नहीं है मेधा  नाटी।

गुरु न मिलें खग कीर,करे गुरु कंचन माटी।।


                        -5-

सागर  में  नैया पड़ी,  पड़े  भँवर के  कूप।

लहरें  ऊँची  उठ रहीं,  बड़ा भयंकर रूप।।

बड़ा भयंकर रूप,बचाए गुरु ही   जीवन।

करते  वही   उपाय,  प्रदाता  वे संजीवन ।।

शुभं कृपाकण एक,हुआ जो सुलभ उजागर।

हुआ  क्षणों में पार,बना गोखुर-सा सागर।।


💐शुभमस्तु !


31.08.2020◆1.45अप.

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