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✍ शब्दकार©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आशा में जीवंतता, का होता संचार।
दृढ़ होता संकल्प जो, बनता नव संसार।।
किरणें आशा की नई, हरती हैं हर रोग।
करें निराशा दूर हम,बनते सुखद सुयोग।।
आया नर संसार में, दे सबको उपहार।
पशु पंछी भी जानते,कहते जिसको प्यार।।
प्यार सभी को चाहिए, फेंकें उर से द्वेष।
आशा का संकल्प लें,बनें न मानव मेष।।
हम तुम जन्मे प्यार से,जन्मा सब संसार।
जीव, जंतु,पौधे,लता,सार एक ही प्यार।।
आशा मरते ही मरा, कोई भी इंसान।
आशा जीवन-ज्योति है,आन मान औ'शान।
जीवन में फटके नहीं, कभी निराशा पास।
आशा हरती नयन से,मत हो 'शुभम'निराश।।
अंधा होता प्यार है,कहते हैं सब लोग।
नयन विवेकी खोल ले,बने अन्यथा रोग।।
सेमल जैसा फूल है, सकल दृष्ट संसार।
झूले आश निराश के,झूल झूल नर क्षार।।
संकल्पों की डोर से,पकड़ गहें शुभ पंथ।
पीछे मुड़ मत देखना,पढ़ें प्यार के ग्रंथ।।
सबसे गंदी मत्स्य है,मानव की यह जात।
मानव नर को खा रहा,शुभं प्यार की मात।
शुभमस्तु !
10.08.2020◆2.30अप.
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