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✍ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
आलू ही नित खाइए,छोड़ करेला, प्याज।
सब्जी राजा का करें,कुछ तो मित्र लिहाज
कुछ तो मित्र लिहाज,तोरई, भिंडी छोड़ो।
बैंगन, कद्दू त्याग ,नेह आलू से जोड़ो।।
छोड़ो लौकी - मोह, नहीं है आलू चालू।
'शुभम' लुढ़कता गोल,रोज ही खाओ आलू।।
-2-
सूखा, गीला, रसभरा, आलू है उपहार।
आलूदम के स्वाद से,परिचित हर परिवार।।
परिचित हर परिवार ,लगाए टोपी भाता।
भून आग पर खूब,नमक मिर्ची से खाता।।
'शुभम' समोसे चार,न रखते तुमको भूखा।
छीलो , काटो मीत, उदर सरकाओ सूखा।।
-3-
चौड़ी चार कचौड़ियाँ,भर आलू नमकीन।
गरम मसाले, मिर्च भी,कर देते हैं पीन।।
कर देते हैं पीन,चटपटी चटनी न्यारी।
टपके मुँह से लार, मिटाती नींद खुमारी।।
'शुभम' सराहे स्वाद,नगर के मौड़ा-मौड़ी।
गरम कचौड़ी देख,गोल फूली औ' चौड़ी।।
-4-
आलू की टिकिया गरम, लल चाए नर -नार।
मटर और छोले भरे , खाएँ सजा - सँवार।।
खाएँ सजा - सँवार,चाटते चटनी दोने।
आँसू टपके चार, भले वे लगते रोने।।
'शुभम' चाटते जाएँ,जले रसना या तालू।
सी-सी करती जीभ,खा रहे टिकिया आलू।।
-5-
आलू खाना चाहते , आओ सिरसागंज।
नई -नई किस्में मिलें,कृषक कर रहे बंज।।
कृषक कर रहे बंज,देश में सारे जाता।
माया नागर मीत, यहाँ का आलू खाता।
'शुभम'सराहें लोग,स्वाद भर रसना तालू।
लें चटखारे रोज़, यहाँ का खा-खा आलू।
💐 शुभमस्तु !
26.08.2020 ◆1.00अपराह्न।
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