बुधवार, 26 अगस्त 2020

आलू ही आलू [ कुण्डलिया]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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-1-

आलू ही नित खाइए,छोड़ करेला,   प्याज।

सब्जी राजा का करें,कुछ तो मित्र लिहाज 

कुछ  तो मित्र लिहाज,तोरई, भिंडी छोड़ो।

बैंगन,    कद्दू त्याग ,नेह  आलू से     जोड़ो।।

छोड़ो  लौकी - मोह, नहीं है आलू     चालू।

'शुभम' लुढ़कता गोल,रोज ही खाओ आलू।।


-2-

सूखा, गीला,  रसभरा, आलू है    उपहार।

आलूदम के स्वाद से,परिचित हर परिवार।।

परिचित  हर  परिवार ,लगाए टोपी  भाता।

भून  आग  पर  खूब,नमक मिर्ची से खाता।।

'शुभम' समोसे चार,न रखते तुमको  भूखा।

छीलो , काटो मीत, उदर सरकाओ   सूखा।।


-3-

चौड़ी चार  कचौड़ियाँ,भर आलू नमकीन।

गरम  मसाले, मिर्च भी,कर देते  हैं  पीन।।

कर  देते  हैं  पीन,चटपटी चटनी  न्यारी।

टपके मुँह से लार, मिटाती नींद खुमारी।।

'शुभम' सराहे स्वाद,नगर के मौड़ा-मौड़ी।

गरम कचौड़ी देख,गोल फूली औ' चौड़ी।।


-4-

आलू की टिकिया गरम, लल चाए नर -नार।

मटर  और छोले भरे , खाएँ सजा - सँवार।।

खाएँ    सजा - सँवार,चाटते चटनी    दोने।

आँसू   टपके  चार, भले वे लगते    रोने।।

'शुभम' चाटते जाएँ,जले रसना या   तालू।

सी-सी करती जीभ,खा रहे टिकिया आलू।।


-5-

आलू   खाना  चाहते , आओ सिरसागंज।

नई -नई किस्में मिलें,कृषक कर रहे बंज।।

कृषक  कर रहे बंज,देश में सारे    जाता।

माया नागर मीत, यहाँ का आलू  खाता। 

'शुभम'सराहें लोग,स्वाद भर रसना तालू।

लें चटखारे रोज़, यहाँ का खा-खा आलू। 


💐 शुभमस्तु !


26.08.2020 ◆1.00अपराह्न।

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