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✍ शब्दकार©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अनत बताया तुमको जग ने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
सूरज चाँद बनाने वाले।
तारों को चमकाने वाले।।
जाना नहीं रूप - रँग हमने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
ये धरती आकाश बनाए।
आते - जाते श्वास बनाए।।
सोते में दिखलाते सपने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
शीतल हवा बहाते हो तुम।
जीवन सब धारण करते हम।
मोर ,पपीहा उड़ते सुगने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
फल , सब्जी बहु अन्न दिए हैं।
प्राणी खाकर सभी जिए हैं।।
मानव को दी ताकत तुमने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
कहाँ बताओ तुम रहते हो!
कभी नहीं कुछ भी कहते हो।
चौंकाया है प्रभु के ढब ने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
रात अँधरी दिवस उजाला।
पशु -पंछी संसार विशाला।।
शब्द नहीं बोला इक रब ने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
सरिता,सागर , पर्वत सारे।
रचना अपनी तुम्हीं सँवारे।।
लगे रहो तुम प्रभु को जपने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
फूलों को तुम ही महकाते।
उपवन में पंछी गुण गाते।।
पता नहीं बतलाया तुमने।
तुम्हें नहीं देखा है हमने।।
💐 शुभमस्तु !
24.08.2020◆5.30 अप.
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