शनिवार, 29 अगस्त 2020

गोभी का फूल [ बालगीत ]

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

मैं  गोभी  का  फूल  निराला।

रंग  दूध - सा  है   मतवाला।।


मुझे  शिकायत  सबसे भारी।

काट,बना   खाते नर - नारी।।

नहीं  बनाता   कोई    माला।

मैं  गोभी  का  फूल निराला।।


पूजा  में  जन   मुझे  न लेते।

उचित कभी सम्मान न देते।।

नहीं  चढ़ाते  कभी  शिवाला।

मैं  गोभी का फूल  निराला।।


गेंदा,    जुही,    चमेली  छोटे।

तगड़े  भी  हम  सबसे  मोटे।।

डाल दिया किस्मत पर ताला।

मैं  गोभी का  फूल  निराला।।


नहीं      बनाते      वन्दनवारें।

कभी नहीं    लटकाते   द्वारे।।

नेता जी  के  गले   न  डाला।

मैं  गोभी  का  फूल निराला।।


कोई   नहीं    बाग  में  बोता।

झूठ   बड़प्पन  पर मैं  रोता।।

लगता  ज्यों   साँचे में ढाला।

मैं  गोभी का  फूल निराला।।


पात,गाँठ   गोभी  तुम आओ।

गोभीपन  का धर्म निभाओ।।

करें आज हम मिल हड़ताला।

मैं  गोभी का  फूल  निराला।।


ये  जन  हमको 'फूल' बनाते।

कहते फूल ,पका  खा जाते।।

मंदिर से भी  देश - निकाला।

मैं  गोभी का  फूल निराला।।

 

💐 शुभमस्तु !


29.08.2020◆2.00 अप.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...