गुरुवार, 27 अगस्त 2020

मन्मय [अतुकान्तिका]

 

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✍ शब्दकार©

❤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुनता है मानव

कहीं भी

संगीत की धुन

सुमधुर,

गाना हो 

या बजाना 

कर्ण-मुखर,

शब्द उठते

करते गुंजन

नव स्वर:

' हो जाता है

मानव तन्मय।'


-यह कथन

नहीं लगता 

समुचित ,

लगता है

हो जाता है

मानव 

भ्रमित शंकित।


तन के भीतर

निवसित है

सुंदर मन,

गुण ग्राहक,

लेता हर आनन्द

काव्य के छंद बन्ध।


तन नहीं 

मन ही है,

वह भोक्ता,

वे आनन्द क्षण,

तन का क्या?

वह तो है

बस मन का दर्पण!

करता है तन को

जो -जो अर्पण,

कर देता मन 

उसका तर्पण,

सहज स्वीकरण!


नहीं होता 

मानव तन्मय ,

वह होता मात्र 

सहज मन्मय!

मन्मय !!

मन्मय !!!

'शुभम ' मन्मय!


💐 शुभमस्तु !


27.08.2020 ◆4.00अप

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