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✍ शब्दकार ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नमी है जहाँ
अंकुरण भी वहाँ,
बीज का वपन
सार्थक है जतन ,
दूर होती है तपन,
फूल-फलते सपन,
उस पावन नमी को
नमन ।
नम और नम्र
जब होता है मन,
तभी करता
मानव भी नमन,
जहाँ होता
अंतर गुप्त अहं का
शमन,
नहीं करते जो जतन,
नहीं करते वे नमन।
नम नहीं
नमी भी नहीं,
बस यही
कमी रही,
तन गया
रुक्ष तन,
नहीं करता नमन।
शुष्क सरवर अगर,
कौन आएगा
तट पर,
नारी न नर,
पशु या पक्षिवर,
वांछित है वहाँ,
नम ,नमी नीर वर।
नम मन से ही
हो सका है
नमन ,
नहीं औपचारिकता,
मिथ्या नहीं
ये कथन।
हटाएँ प्रथम
नमी की कमी,
न समझें
बस हमीं!
बस हमीं!!
बस हमीं !!!
मत घेरें
ये मन,
बनायें मत तमी!
जागरण,
सदाचरण ,
देशभक्ति ,
गुरुभक्ति ,
को सदा ही नमन,
शत -शत नमन।।
💐 शुभमस्तु !
20.08.2020◆10.45पूर्वाह्न।
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