शनिवार, 22 अगस्त 2020

साँच बात रुचती नहीं! [ दोहा ग़ज़ल ]

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✍ शब्दकार ©

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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साँच बात रुचती नहीं,लगती नीम कुनैन।

झूठे-मीठे विष भरे,भावें जन को बैन।।


बिना  पढ़े  पूरी  कथा,वाह! वाह!! की टेर,

अपना  राग अलापते, काला मन   बेचैन।


करो प्रशंसा झूठ की,खिलते अधर  गुलाब,

सीसा  घुलता कान  में, मुँह से गिरता  फैन।


चाटुकारिता की चिलम, गुड़-गुड़ करते लोग,

सच  का साहस  है नहीं,डरते हैं  दिन रैन।


कड़वा  थू-थू  कर  रहे, निगलें दूध   मलाइ,

झूठी  बातें  दे  रहीं,दिल   को साँचा   चैन।


सच  सूरज -सा  तप्त  है,  झूठ झपट्टेमार,

लप-लप रस टपका रही, रसना प्यासी है न?


रग पर रक्खा हाथ जो,चीख उठे कर शोर,

सहलाया थोड़ा'शुभम', कितनी प्यारी भैंन।


💐 शुभमस्तु !


22.08.2020◆7.00 अप.

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