शनिवार, 8 अगस्त 2020

ग़ज़ल

 ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍ शब्दकार©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

उन्हें    क़ातिल  बताया  जा रहा    है।

लहू   जिनका   बहाया  जा रहा    है।।


समंदर    से  चला  दरिया  पलट  कर,

पहाड़ों    पर  चढ़ाया   जा  रहा     है।


नियत    खोटी    हुई      है आदमी  की,

मुहब्बत    को     सताया  जा रहा   है।


 नहीं     मालूम     हैं   जीवन   के   मानी,

उसे   तो   बस   बिताया    जा  रहा     है ।


फ़क़त    इंसान   अंधा   इस कदर  अब,

पिता    को  मृत   बताया जा रहा     है।


हवस      पैसे    की   इंसा  को  हुई    यूँ,

कि   अब   रिश्तों  को खाया जा  रहा है।


यहाँ        अपना -   पराया   कौन  समझे,

'शुभम'  कुनबा  ख़ुद मिटाया जा  रहा है।


💐 शुभमस्तु  !


08.08.2020◆3.15 अपराह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...