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✍ शब्दकार©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बहन नहीं छोटी बड़ी,राखी बाँधे कौन।
सूनी पड़ी कलाइयाँ ,बैठे घर में मौन।।
जीते जी जिंदा नहीं,नहीं नेह का बिंदु।
तरस रहा आकाश में,बिना बहन का इंदु।।
बड़भागी वे बंधु हैं,जिन्हें बहन का प्यार।
मिल जाता है साल में,खोल हृदय के द्वार।।
सोदर भाई बहन में,अगर नहीं हो नेह।
खोट कहीं पर है जमा, उपजाता संदेह।।
एक बरस में एक दिन,राखी का त्यौहार।
आता भारत देश में ,जता नेह व्यौहार।।
कच्चे धागे में बसे, जटिल नेह संबंध।
आती है ससुराल से, बहना हो स्वछंद।।
पीहर से नैहर चली,बाँध नेह की डोर।
मिलती बहना बंधु से,भिगा नयन की कोर।।
हरी भुजरिया सौंपती,निज भाई के हाथ।
हरे -भरे खुशहाल हो,सदा निभाना साथ।।
राखी पर झूले पड़े, गाएँ गीत मल्हार।
कोयल कूकी बाग में,घने आम की डार।।
फैशन में है रँग गया,राखी का त्यौहार।
'शुभम'प्रदर्शन हेम का,प्रेम रहित व्यौहार।।
सावन की शुभ पूर्णिमा, चाँद निहारे आज।
सिंधु हिलोरें ले रहा,करता सुत पर नाज़।।
💐 शुभमस्तु !
02.08.2020 ◆7.00 अपराह्न।
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