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✍ शब्दकार©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
काली आधी रात थी, भादों का शुभ माह।
कृष्ण पक्षकी अष्टमी,रोहिणि नखत उछाह।।
रोहिणि नखत उछाह, देवकी चिंतित भारी।
यह अष्टम संतान,जनक भी बड़े दुखारी।।
प्रभु की कृपा अपार, खुले ताले बिन ताली।
सोए पहरेदार, कैद अब रही न काली।
-2-
देरी पल की की नहीं,जागा जनक विवेक।
शिशु को ढँकके सूप में,काज किया है नेक।
काज किया है नेक,विष्णु निज रूप दिखाया
चक्र सुदर्शन देख, डरी काँपी वह जाया।।
रखा श्याम शिशु रूप, विराजी शांति घनेरी।
'शुभम' चले वसुदेव, नंद के ग्राम न देरी।।
-3-
यमुना में थी बाढ़अति,उफ़न रहा जल तेज।
भँवर भयंकर पड़ रहे,लहर सनसनीखेज़।।
लहर सनसनीखेज , किनारे टूटे सारे।
घुसे सरित वसुदेव, बाढ़ के बारे - न्यारे।।
'शुभम'बरसते मेघ,न भीगें शिशु नव किशना
शेषनाग की छाँव, मंद गति बहती यमुना।।
-4-
आए यमुना पार पितु , शीश उठाए सूप।
कान्हा क्रीड़ा में मगन, लीला धारी रूप।।
लीलाधारी रूप , नंद के ग्राम पधारे।
घन निशीथ के बाद,पहुँचकर यशुदा द्वारे।।
सोई थीं नंदरानि , देखती सपने भाए।
'शुभम' सुलाया पास,सुता ले मथुरा आए।
-5-
माता ने देखा सुबह,खेल रहा शिशु एक।
अंक लगाया नेह से,कृपा ईश की नेक।।
कृपा ईश की नेक,हुई जो सुत घर आया।
दिया नंद संदेश, हर्ष उर नहीं समाया ।।
शुभं फैलता मोद,कृपा की बड़ी विधाता।
नाचे यशुदा खूब,कान्ह की धात्री माता।।
💐 शुभमस्तु !
11.08.2020 ◆7.45
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