बुधवार, 12 अगस्त 2020

योग योगेश्वर श्रीकृष्ण [ अतुकान्तिका ]

 

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✍ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पुण्यात्मा

वे जनक -जननी,

जन्म लेते 

गृह जिनके

पुण्यात्मा सदात्मा

महान आत्मा।


आत्मा ही 

धारती है देह,

किसी भी 

मानव के गेह,

नहीं है

तनिक भी संदेह,

अथवा यौनि से

वह जन्म देती 

पशु ,पक्षी,

जल ,थल नभचर 

रूप में सदेह।


अंशी परमात्मा

अंश है आत्मा,

ज्यों सागर की

एक नन्हीं बूँद,

अपरिमेय व्यापकता,

परब्रह्म,

सीमित जीव की 

जैविकता ,

मात्र एक भ्रम,

चौरासी लाख यौनियों में

चलता हुआ अटूट क्रम,

कहाँ ब्रह्म!

कहाँ  एक तुच्छ भ्रम?


परमात्मा 

नर रूप में

करते रहे लीला ,

मात्र अभिनय ,

आयौनिज होते सदा,

प्रकट ही होते

मनुज -शिशु रूप में।


श्रीकृष्ण का

यह जन्म नहीं ,

अवतार है ,

प्राकट्योत्सव का

उपहार है!

धरा के पाप का

उपसंहार है।


निमित्त बनते

जनक -जननी

वसुदेव -देवकी,

पालती माता यशोदा,

नंदराय भी,

लीला उन्हीं की

वही जानें।

आदमी तो 

आदमी वत

आदमी के साँचे में

ही ढालें, 

ईश्वर परमात्मा को

मानव बना लें!

और जन्म दें

माँ देवकी के गर्भ से,

अनभिज्ञ हैं जो

परम सत्ता के 

गूढ़ मर्म से।


जन्माष्टमी नहीं

 यह कृष्ण की,

श्रीकृष्ण अवतारोत्सव

प्राकट्योत्सव है,

यह परमात्मा

श्रीविष्णु जी के ,

धर्म की संस्थापना,

पापियों से मुक्ति,

संतों की भक्ति,

भक्तों की अनुरक्ति,

हैं श्रीकृष्ण 

योग योगेश्वर श्रीकृष्ण ।


💐 शुभमस्तु  !


12.08.2020 ◆11.50 पूर्वाह्न।

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