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✍शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कटते वन
घटते जलकण
लोपित घन।
सूखा सावन
पुरवा सन -सन
भारी है मन।
उड़ते कण
रज भरी नयन
बिखरे तृण।
मम सदन
रिक्त बिन सजन
कैसा दर्पण ?
नील गगन
नहीं नीर न घन
वृथा जतन।
मेरा यौवन
विरहानल बन
जलता तन।
होता कंपन
नहिं आए सजन
मेरा ये तन!
नीले जामुन
करते हैं पतन
मनभावन।
नील गगन
करता आलिंगन
धरा मगन।
हरी चादर
आती पहनकर
प्रमत्त मन।
💐 शुभमस्तु !
25.08.2020◆2.30 अपराह्न।
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